Sukhmani Sahib Ashtpadi 8 Hindi Lyrics & Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8 Hindi Lyrics, and Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
सुखमनी साहिब असटपदी 8
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8 Hindi Lyrics & Meaning
सलोकु ॥
मनि साचा मुखि साचा सोइ ॥
जिसके मन में सत्य है और मुँह में भी वही सत्य है
अवरु न पेखै एकसु बिनु कोइ ॥
और जो एक परमात्मा के अलावा किसी दूसरे को नहीं देखता,
नानक इह लछण ब्रहम गिआनी होइ ॥१॥
हे नानक ! यह गुण ब्रह्मज्ञानी के होते हैं।॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
असटपदी ॥
अष्टपदी ॥
ब्रहम गिआनी सदा निरलेप ॥
ब्रह्मज्ञानी हमेशा निर्लिप्त रहता है,
जैसे जल महि कमल अलेप ॥
जैसे जल में कमल का फूल स्वच्छ होता है।
ब्रहम गिआनी सदा निरदोख ॥
ब्रह्मज्ञानी सदा निर्दोष है,
जैसे सूरु सरब कउ सोख ॥
जैसे सूर्य समस्त (रसों को) सुखा देता है।
ब्रहम गिआनी कै द्रिसटि समानि ॥
ब्रह्मज्ञानी सबको एक आँख से देखता है,
जैसे राज रंक कउ लागै तुलि पवान ॥
जैसे हवा राजा और कंगाल को एक समान लगती है।
ब्रहम गिआनी कै धीरजु एक ॥
ब्रह्मज्ञानी की सहनशीलता एक समान होती है,
जिउ बसुधा कोऊ खोदै कोऊ चंदन लेप ॥
जैसे कोई धरती को खोदता है और कोई चन्दन का लेप करता है।
ब्रहम गिआनी का इहै गुनाउ ॥
ब्रह्मज्ञानी का यही गुण है।
नानक जिउ पावक का सहज सुभाउ ॥१॥
हे नानक ! जैसे अग्नि का सहज स्वभाव होता है। १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
ब्रहम गिआनी निरमल ते निरमला ॥
ब्रह्मज्ञानी निर्मल से भी परम निर्मल है,
जैसे मैलु न लागै जला ॥
जैसे जल को मैल नहीं लगती।
ब्रहम गिआनी कै मनि होइ प्रगासु ॥
ब्रह्मज्ञानी के मन में यूं प्रकाश होता है जैसे
जैसे धर ऊपरि आकासु ॥
पृथ्वी के ऊपर आकाश ।
ब्रहम गिआनी कै मित्र सत्रु समानि ॥
ब्रह्मज्ञानी के लिए मित्र एवं शत्रु एक समान होते हैं।
ब्रहम गिआनी कै नाही अभिमान ॥
ब्रह्मज्ञानी में थोड़ा-सा भी अभिमान नहीं होता।
ब्रहम गिआनी ऊच ते ऊचा ॥
ब्रह्मज्ञानी उच्च -सर्वोच्च है।
मनि अपनै है सभ ते नीचा ॥
परन्तु अपने मन में वह सबसे निम्न होता है।
ब्रहम गिआनी से जन भए ॥
हे नानक ! केवल वही पुरुष ब्रह्मज्ञानी बनता है,
नानक जिन प्रभु आपि करेइ ॥२॥
जिन्हें परमेश्वर स्वयं बनाता है ॥२॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
ब्रहम गिआनी सगल की रीना ॥
ब्रह्मज्ञानी सबकी चरण-धूलि है।
आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना ॥
ब्रह्मज्ञानी आत्मिक आनन्द को अनुभव करता है।
ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ ॥
ब्रह्मज्ञानी सब पर कृपा करता है।
ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥
ब्रह्मज्ञानी के पास कोई बुराई नहीं होती और वह कुछ भी बुरा नहीं करता।
ब्रहम गिआनी सदा समदरसी ॥
ब्रह्मज्ञानी सदैव समदर्शी होता है।
ब्रहम गिआनी की द्रिसटि अम्रितु बरसी ॥
ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि से अमृत बरसता है।
ब्रहम गिआनी बंधन ते मुकता ॥
ब्रह्मज्ञानी बन्धनों से मुक्त रहता है।
ब्रहम गिआनी की निरमल जुगता ॥
ब्रह्मज्ञानी का जीवन-आचरण बड़ा पवित्र है।
ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन ॥
ब्रह्मज्ञानी का भोजन ज्ञान होता है।
नानक ब्रहम गिआनी का ब्रहम धिआनु ॥३॥
हे नानक ! ब्रह्मज्ञानी भगवान के ध्यान में ही मग्न रहता है॥ ३॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
ब्रहम गिआनी एक ऊपरि आस ॥
ब्रह्मज्ञानी की एक ईश्वर पर ही आशा होती है।
ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥
ब्रह्मज्ञानी का विनाश नहीं होता।
ब्रहम गिआनी कै गरीबी समाहा ॥
ब्रह्मज्ञानी नम्रता में ही टिका रहता है।
ब्रहम गिआनी परउपकार उमाहा ॥
ब्रह्मज्ञानी को परोपकार करने का उत्साह बना रहता है।
ब्रहम गिआनी कै नाही धंधा ॥
ब्रह्मज्ञानी सांसारिक विवादों से परे होता है।
ब्रहम गिआनी ले धावतु बंधा ॥
ब्रह्मज्ञानी अपने भागते मन को नियंत्रण में कर लेता है।
ब्रहम गिआनी कै होइ सु भला ॥
ब्रह्मज्ञानी के कर्म श्रेष्ठ हैं, वह जो भी करता है, भला ही करता है।
ब्रहम गिआनी सुफल फला ॥
ब्रह्मज्ञानी भलीभाँति सफल होता है।
ब्रहम गिआनी संगि सगल उधारु ॥
ब्रह्मज्ञानी की संगति में रहने से सबका उद्धार हो जाता है।
नानक ब्रहम गिआनी जपै सगल संसारु ॥४॥
हे नानक ! सारी दुनिया ब्रह्मज्ञानी की प्रशंसा करती है ॥ ४॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
ब्रहम गिआनी कै एकै रंग ॥
ब्रह्मज्ञानी केवल एक ईश्वर से ही प्रेम करता है।
ब्रहम गिआनी कै बसै प्रभु संग ॥
ईश्वर ब्रह्मज्ञानी के साथ-साथ रहता है।
ब्रहम गिआनी कै नामु आधारु ॥
ईश्वर का नाम ही ब्रह्मज्ञानी का आधार है।
ब्रहम गिआनी कै नामु परवारु ॥
ईश्वर का नाम ही ब्रह्मज्ञानी का परिवार है।
ब्रहम गिआनी सदा सद जागत ॥
ब्रह्मज्ञानी हमेशा जाग्रत रहता है।
ब्रहम गिआनी अह्मबुधि तिआगत ॥
ब्रह्मज्ञानी अपनी अहंबुद्धि को त्याग देता है।
ब्रहम गिआनी कै मनि परमानंद ॥
ब्रह्मज्ञानी के हृदय में परमानन्द वास करता है।
ब्रहम गिआनी कै घरि सदा अनंद ॥
ब्रह्मज्ञानी के हृदय-रूपी घर में सदा आनंद बना रहता है।
ब्रहम गिआनी सुख सहज निवास ॥
ब्रह्मज्ञानी हमेशा सहज सुख में निवास करता है।
नानक ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥५॥
हे नानक ! ब्रह्मज्ञानी का विनाश नहीं होता। ॥५॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
ब्रहम गिआनी ब्रहम का बेता ॥
ब्रह्मज्ञानी ब्रह्म ज्ञाता होता है।
ब्रहम गिआनी एक संगि हेता ॥
ब्रह्मज्ञानी एक ईश्वर से ही प्रेम करता है।
ब्रहम गिआनी कै होइ अचिंत ॥
ब्रह्मज्ञानी के हृदय में हमेशा बेफ्रिक्री रहती है।
ब्रहम गिआनी का निरमल मंत ॥
ब्रह्मज्ञानी का मंत्र पवित्र करने वाला होता है।
ब्रहम गिआनी जिसु करै प्रभु आपि ॥
ब्रह्मज्ञानी वही होता है, जिसे ईश्वर स्वयं लोकप्रिय बनाता है।
ब्रहम गिआनी का बड परताप ॥
ब्रह्मज्ञानी का बड़ा प्रताप है।
ब्रहम गिआनी का दरसु बडभागी पाईऐ ॥
ब्रह्मज्ञानी के दर्शन किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होते हैं।
ब्रहम गिआनी कउ बलि बलि जाईऐ ॥
ब्रह्मज्ञानी पर हमेशा बलिहारी जाना चाहिए।
ब्रहम गिआनी कउ खोजहि महेसुर ॥
ब्रह्मज्ञानी को शिवशंकर भी खोजते रहते हैं।
नानक ब्रहम गिआनी आपि परमेसुर ॥६॥
हे नानक ! परमेश्वर स्वयं ही ब्रह्मज्ञानी है ॥६॥
ब्रहम गिआनी की कीमति नाहि ॥
ब्रह्मज्ञानी के गुणों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ब्रहम गिआनी कै सगल मन माहि ॥
सब गुण ब्रह्मज्ञानी के हृदय में विद्यमान हैं।
ब्रहम गिआनी का कउन जानै भेदु ॥
ब्रहाज्ञानी के भेद को कौन जान सकता है ?
ब्रहम गिआनी कउ सदा अदेसु ॥
ब्रह्मज्ञानी को सदैव प्रणाम करना चाहिए।
ब्रहम गिआनी का कथिआ न जाइ अधाख्यरु ॥
ब्रह्मज्ञानी की महिमा का एक आधा अक्षर भी वर्णन नहीं किया जा सकता।
ब्रहम गिआनी सरब का ठाकुरु ॥
ब्रह्मज्ञानी समस्त जीवों का पूज्य स्वामी है।
ब्रहम गिआनी की मिति कउनु बखानै ॥
ब्रह्मज्ञानी का अनुमान कौन लगा सकता है।
ब्रहम गिआनी की गति ब्रहम गिआनी जानै ॥
केवल ब्रह्मज्ञानी ही ब्रह्मज्ञानी की गति को जानता है।
ब्रहम गिआनी का अंतु न पारु ॥
ब्रह्मज्ञानी के गुणों का कोई आर-पार नहीं।
नानक ब्रहम गिआनी कउ सदा नमसकारु ॥७॥
हे नानक ! ब्रह्मज्ञानी को हमेशा ही प्रणाम करते रहो ॥७॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 8
ब्रहम गिआनी सभ स्रिसटि का करता ॥
ब्रह्मज्ञानी सारी दुनिया का कर्तार है।
ब्रहम गिआनी सद जीवै नही मरता ॥
ब्रह्मज्ञानी सदैव ही जीवित रहता है और मरता नहीं।
ब्रहम गिआनी मुकति जुगति जीअ का दाता ॥
ब्रह्मज्ञानी जीवों को मुक्ति, युक्ति एवं जीवन देने वाला दाता है।
ब्रहम गिआनी पूरन पुरखु बिधाता ॥
ब्रह्मज्ञानी पूर्ण पुरुष विधाता है।
ब्रहम गिआनी अनाथ का नाथु ॥
ब्रह्मज्ञानी अनाथों का नाथ है।
ब्रहम गिआनी का सभ ऊपरि हाथु ॥
ब्रह्मज्ञानी का रक्षक हाथ समस्त मानव जाति पर है।
ब्रहम गिआनी का सगल अकारु ॥
यह सारा जगत्-प्रसार ब्रह्मज्ञानी का ही है।
ब्रहम गिआनी आपि निरंकारु ॥
ब्रह्मज्ञानी स्वयं ही निरंकार है।
ब्रहम गिआनी की सोभा ब्रहम गिआनी बनी ॥
ब्रह्मज्ञानी की शोभा केवल ब्रह्मज्ञानी को ही बनती है।
नानक ब्रहम गिआनी सरब का धनी ॥८॥८॥
हे नानक ! ब्रह्मज्ञानी सबका मालिक है ॥८॥ ८॥