Sukhmani Sahib Ashtpadi 7 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7 Hindi Lyrics, and Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

सुखमनी साहिब असटपदी 7

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

सलोकु ॥

अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ ॥
वह पारब्रह्म प्रभु अगम्य एवं अनन्त है।

जो जो कहै सु मुकता होइ ॥
जो कोई भी उसके नाम का जाप करता है,
वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

सुनि मीता नानकु बिनवंता ॥
नानक प्रार्थना करता है, हे मेरे मित्र ! ध्यानपूर्वक सुन,

साध जना की अचरज कथा ॥१॥
साधुओं की कथा बड़ी अद्भुत है ॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

असटपदी ॥
अष्टपदी।

साध कै संगि मुख ऊजल होत ॥
साधुओं की संगति करने से मुख उज्ज्वल हो जाता है।

साधसंगि मलु सगली खोत ॥
साधुओं की संगति करने से विकारों की तमाम मैल दूर हो जाती है।

साध कै संगि मिटै अभिमानु ॥
साधुओं की संगति करने से अभिमान मिट जाता है।

साध कै संगि प्रगटै सुगिआनु ॥
साधुओं की संगति करने से आत्म-ज्ञान प्रगट हो जाता है।

साध कै संगि बुझै प्रभु नेरा ॥
साधुओं की संगति करने से प्रभु निकट ही रहता हुआ प्रतीत होता है।

साधसंगि सभु होत निबेरा ॥
साधुओं की संगति करने से तमाम विवाद निपट जाते हैं।

साध कै संगि पाए नाम रतनु ॥
साधुओं की संगति करने से नाम-रत्न प्राप्त हो जाता है।

साध कै संगि एक ऊपरि जतनु ॥
साधुओं की संगति में मनुष्य केवल एक ईश्वर हेतु ही प्रयास करता है।

साध की महिमा बरनै कउनु प्रानी ॥
कौन-सा प्राणी साधुओं की महिमा का वर्णन कर सकता है ?

नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥१॥
हे नानक ! साधुओं की शोभा प्रभु (की महिमा) में ही लीन हुई है ॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साध कै संगि अगोचरु मिलै ॥
साधुओं की संगति करने से अगोचर प्रभु मिल जाता है।

साध कै संगि सदा परफुलै ॥
साधुओं की संगति करने से प्राणी सदा प्रफुल्लित रहता है।

साध कै संगि आवहि बसि पंचा ॥
साधुओं की संगति करने से पाँच शत्रु
(काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) वश में आ जाते हैं।

साधसंगि अम्रित रसु भुंचा ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य अमृत रूप नाम का रस चख लेता है।

साधसंगि होइ सभ की रेन ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य सबकी धूलि बन जाता है।

साध कै संगि मनोहर बैन ॥
साधुओं की संगति करने से वाणी मनोहर हो जाती है।

साध कै संगि न कतहूं धावै ॥
साधुओं की संगति करने से मन कहीं नहीं जाता।

साधसंगि असथिति मनु पावै ॥
साधुओं की संगति करने से मन स्थिरता प्राप्त कर लेता है।

साध कै संगि माइआ ते भिंन ॥
साधुओं की संगति में यह माया से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।

साधसंगि नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥
हे नानक ! साधुओं की संगति में रहने से प्रभु सुप्रसन्न हो जाता है ॥२॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साधसंगि दुसमन सभि मीत ॥
साधु की संगति करने से सभी दुश्मन भी मित्र बन जाते हैं।

साधू कै संगि महा पुनीत ॥
साधु की संगति करने से मनुष्य महापवित्र हो जाता है।

साधसंगि किस सिउ नही बैरु ॥
साधुओं की संगति करने से वह किसी से वैर नहीं करता।

साध कै संगि न बीगा पैरु ॥
साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य कुमार्ग की ओर चरण नहीं करता।

साध कै संगि नाही को मंदा ॥
साधु की संगति करने से कोई बुरा दिखाई नहीं देता।

साधसंगि जाने परमानंदा ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य महान सुख के मालिक ईश्वर को ही जानता है।

साध कै संगि नाही हउ तापु ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य के अहंकार का ताप उतर जाता है।

साध कै संगि तजै सभु आपु ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य तमाम अहंत्व को त्याग देता है।

आपे जानै साध बडाई ॥
ईश्वर स्वयं ही साधुओं की महिमा को जानता है।

नानक साध प्रभू बनि आई ॥३॥
हे नानक ! साधु एवं परमेश्वर का प्रेम परिपक्व हो जाता है ॥३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साध कै संगि न कबहू धावै ॥
साधु की संगति करने से प्राणी का मन कभी नहीं भटकता।

साध कै संगि सदा सुखु पावै ॥
साधु की संगति करने से वह सदा सुख प्राप्त करता है।

साधसंगि बसतु अगोचर लहै ॥
साधुओं की संगति करने से नाम रूपी अगोचर वस्तु प्राप्त हो जाती है।

साधू कै संगि अजरु सहै ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य शिथिल न होने वाली शक्ति को सहन कर लेता है।

साध कै संगि बसै थानि ऊचै ॥
साधुओं की संगति करने से प्राणी सर्वोच्च स्थान में निवास करता है।

साधू कै संगि महलि पहूचै ॥
साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य आत्मस्वरूप में पहुँच जाता है।

साध कै संगि द्रिड़ै सभि धरम ॥
साधुओं की संगति करने से प्राणी का धर्म पूरी तरह सुदृढ़ हो जाता है।

साध कै संगि केवल पारब्रहम ॥
साधुओं की संगति में रहने से
मनुष्य केवल पारब्रह्म की ही आराधना करता है।

साध कै संगि पाए नाम निधान ॥
साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य नाम रूपी खजाना प्राप्त कर लेता है।

नानक साधू कै कुरबान ॥४॥
हे नानक ! मैं उन साधुओं पर तन-मन से न्यौछावर हूँ ॥४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साध कै संगि सभ कुल उधारै ॥
साधुओं की संगति द्वारा मनुष्य के समूचे वंश का उद्धार हो जाता है।

साधसंगि साजन मीत कुट्मब निसतारै ॥
साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य के मित्र-सज्जन
एवं परिवार का भवसागर से उद्धार हो जाता है।

साधू कै संगि सो धनु पावै ॥
साधुओं की संगति में रहने से वह धन प्राप्त हो जाता है,

जिसु धन ते सभु को वरसावै ॥
जिस धन से हरेक पुरुष लाभ प्राप्त करता है और तृप्त हो जाता है।

साधसंगि धरम राइ करे सेवा ॥
साधुओं की संगति में रहने से यमराज भी सेवा करता है।

साध कै संगि सोभा सुरदेवा ॥
जो साधुओं की संगति में रहता है,
देवदूत एवं देवते भी उसका यशोगान करते हैं।

साधू कै संगि पाप पलाइन ॥
साधुओं की संगति करने से समूचे पाप नाश हो जाते हैं।

साधसंगि अम्रित गुन गाइन ॥
साधुओं की संगति द्वारा मनुष्य अमृतमयी नाम का यश गायन करता है।

साध कै संगि स्रब थान गमि ॥
साधुओं की संगति द्वारा मनुष्य की समस्त स्थानों पर पहुँच हो जाती है।

नानक साध कै संगि सफल जनम ॥५॥
हे नानक ! साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य-जन्म सफल हो जाता है ॥५॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साध कै संगि नही कछु घाल ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य को मेहनत नहीं करनी पड़ती।

दरसनु भेटत होत निहाल ॥
साधुओं के दर्शनमात्र एवं भेंट से मनुष्य कृतार्थ हो जाता है।

साध कै संगि कलूखत हरै ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य के तमाम पाप नाश हो जाते हैं।

साध कै संगि नरक परहरै ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य नरक से बच जाता है।

साध कै संगि ईहा ऊहा सुहेला ॥
साधुओं की संगति करने से प्राणी लोक-परलोक में सुखी हो जाता है।

साधसंगि बिछुरत हरि मेला ॥
साधुओं की संगति करने से जो ईश्वर से जुदा हुए हैं, वे उससे मिल जाते हैं।

जो इछै सोई फलु पावै ॥
साधुओं की संगति करने से मनुष्य जिस फल का वह इच्छुक होता है, उसे मिल जाता है

साध कै संगि न बिरथा जावै ॥
साधुओं की संगति करने से वह खाली हाथ नहीं जाता।

पारब्रहमु साध रिद बसै ॥
पारब्रह्म-प्रभु साधुओं के हृदय में निवास करता है।

नानक उधरै साध सुनि रसै ॥६॥
हे नानक ! साधुओं की जिव्हा से ईश्वर का नाम सुनकर जीव पार हो जाता है ॥६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साध कै संगि सुनउ हरि नाउ ॥
साधु की संगति में रहकर भगवान का नाम सुनो।

साधसंगि हरि के गुन गाउ ॥
साधुओं की संगति में ईश्वर का गुणानुवाद करो।

साध कै संगि न मन ते बिसरै ॥
साधुओं की संगति में मनुष्य प्रभु को अपने हृदय से नहीं भुलाता।

साधसंगि सरपर निसतरै ॥
साधुओं की संगति में उसका निश्चित ही भवसागर से उद्धार हो जाता है।

साध कै संगि लगै प्रभु मीठा ॥
साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य को प्रभु मीठा लगने लगता है।

साधू कै संगि घटि घटि डीठा ॥
साधुओं की संगति में ईश्वर प्रत्येक हृदय में दिखाई देता है।

साधसंगि भए आगिआकारी ॥
साधुओं की संगति में मनुष्य ईश्वर का आज्ञाकारी हो जाता है।

साधसंगि गति भई हमारी ॥
साधुओं की संगति में हमारी गति हो गई है।

साध कै संगि मिटे सभि रोग ॥
साधुओं की संगति में रहने से तमाम रोग मिट जाते हैं।

नानक साध भेटे संजोग ॥७॥
हे नानक ! संयोग से ही साधु मिलते हैं। ॥७॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7

साध की महिमा बेद न जानहि ॥
साधु की महिमा वेद भी नहीं जानते।

जेता सुनहि तेता बखिआनहि ॥
वे उनके बारे जितना सुनते हैं, उतना ही बखान करते हैं।

साध की उपमा तिहु गुण ते दूरि ॥
साधु की उपमा (माया के) तीनों ही गुणों से दूर है।

साध की उपमा रही भरपूरि ॥
साधु की उपमा सर्वव्यापक है।

साध की सोभा का नाही अंत ॥
साधु की शोभा का कोई अन्त नहीं।

साध की सोभा सदा बेअंत ॥
साधु की शोभा सदैव ही अनन्त है।

साध की सोभा ऊच ते ऊची ॥
साधु की शोभा उच्च -सर्वोच्च है।

साध की सोभा मूच ते मूची ॥
साधु की शोभा महानों में बड़ी महान है।

साध की सोभा साध बनि आई ॥
साधु की शोभा केवल साधु को ही उपयुक्त लगती है।

नानक साध प्रभ भेदु न भाई ॥८॥७॥
नानक का कथन है कि हे मेरे भाई ! साधु एवं प्रभु में कोई भेद नहीं ॥८॥ ७॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 7