Sukhmani Sahib Ashtpadi 6 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6 Hindi Lyrics, and Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

सुखमनी साहिब असटपदी 6

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

सलोकु ॥

काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहमेव ॥
हे ईश्वर ! मेरा काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार निवृत्त हो जाए

नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥१॥
मैं तेरी शरण में आया हूँ. हे गुरुदेव ! मुझ पर ऐसी कृपा करें ॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

असटपदी ॥
अष्टपदी॥

जिह प्रसादि छतीह अम्रित खाहि ॥
“(हे जीव !) जिसकी कृपा से तू छत्तीस प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन खाता है,

तिसु ठाकुर कउ रखु मन माहि ॥
उस प्रभु को अपने मन में याद कर।

जिह प्रसादि सुगंधत तनि लावहि ॥
जिसकी कृपा से तुम अपने शरीर पर सुगंधियाँ लगाते हो,

तिस कउ सिमरत परम गति पावहि ॥
उसका भजन करने से तुझे परमगति मिल जाएगी।

जिह प्रसादि बसहि सुख मंदरि ॥
जिसकी कृपा से तुम महलों में सुख से रहते हो,

तिसहि धिआइ सदा मन अंदरि ॥
अपने मन में हमेशा उसका ध्यान करो।

जिह प्रसादि ग्रिह संगि सुख बसना ॥
जिसकी कृपा से तुम अपने घर में सुखपूर्वक रहते हो,

आठ पहर सिमरहु तिसु रसना ॥
अपनी जिव्हा से आठ पहर उसका सिमरन करो।

जिह प्रसादि रंग रस भोग ॥
हे नानक ! जिस की कृपा से रंग तमाशे, स्वादिष्ट व्यंजन एवं पदार्थ प्राप्त होते हैं,

नानक सदा धिआईऐ धिआवन जोग ॥१॥
उस याद करने योग्य ईश्वर का सदैव ध्यान करना चाहिए ॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

जिह प्रसादि पाट पट्मबर हढावहि ॥
जिसकी कृपा से तुम रेशमी वस्त्र पहनते हो,

तिसहि तिआगि कत अवर लुभावहि ॥
उसे भुलाकर क्यों दूसरों में मस्त हो रहे हो।

जिह प्रसादि सुखि सेज सोईजै ॥
जिसकी कृपा से तुम सुखपूर्वक सेज पर सोते हो।

मन आठ पहर ता का जसु गावीजै ॥
हे मेरे मन ! उस प्रभु का आठों प्रहर यशोगान करना चाहिए।

जिह प्रसादि तुझु सभु कोऊ मानै ॥
जिसकी कृपा से प्रत्येक व्यक्ति तेरा आदर-सत्कार करता है,

मुखि ता को जसु रसन बखानै ॥
अपने मुँह एवं जिव्हा से उसका यश सदैव बखान कर।

जिह प्रसादि तेरो रहता धरमु ॥
जिसकी कृपा से तेरा धर्म कायम रहता है,

मन सदा धिआइ केवल पारब्रहमु ॥
हे मेरे मन ! तू हमेशा उस परब्रह्म का ध्यान कर।

प्रभ जी जपत दरगह मानु पावहि ॥
पूज्य परमेश्वर की आराधना करने से तू उसके दरबार में शोभा प्राप्त करेगा।

नानक पति सेती घरि जावहि ॥२॥
हे नानक ! इस तरह तुम प्रतिष्ठा सहित अपने धाम (परलोक) जाओगे ॥२॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

जिह प्रसादि आरोग कंचन देही ॥
हे मन ! जिसकी कृपा से तुझे सोने जैसा सुन्दर शरीर मिला है,

लिव लावहु तिसु राम सनेही ॥
उस प्रियतम राम से वृति लगा।

जिह प्रसादि तेरा ओला रहत ॥
जिसकी कृपा से तेरा पर्दा रहता है,

मन सुखु पावहि हरि हरि जसु कहत ॥
उस प्रभु-परमेश्वर की स्तुति करने से तुम सुख प्राप्त कर लोगे।

जिह प्रसादि तेरे सगल छिद्र ढाके ॥
जिसकी कृपा से तेरे तमाम पाप छिप जाते हैं।

मन सरनी परु ठाकुर प्रभ ता कै ॥
हे मन ! उस प्रभु-परमेश्वर की शरण ले।

जिह प्रसादि तुझु को न पहूचै ॥
जिसकी कृपा से कोई तेरे बराबर नहीं पहुँचता,

मन सासि सासि सिमरहु प्रभ ऊचे ॥
हे मेरे मन ! अपने श्वास-श्वास से सर्वोपरि प्रभु को याद कर।

जिह प्रसादि पाई द्रुलभ देह ॥
जिसकी कृपा से तुझे दुर्लभ मनुष्य शरीर मिला है,

नानक ता की भगति करेह ॥३॥
हे नानक ! उस भगवान की भक्ति किया कर ॥३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

जिह प्रसादि आभूखन पहिरीजै ॥
जिसकी कृपा से आभूषण पहने जाते हैं,

मन तिसु सिमरत किउ आलसु कीजै ॥
हे मन ! उसकी आराधना करते हुए आलस्य क्यों किया जाए?

जिह प्रसादि अस्व हसति असवारी ॥
जिसकी कृपा से तुम घोड़ों एवं हाथियों की सवारी करते हो,

मन तिसु प्रभ कउ कबहू न बिसारी ॥
हे मन ! उस ईश्वर को कभी विस्मृत न कर।

जिह प्रसादि बाग मिलख धना ॥
जिसकी कृपा से उद्यान, धरती एवं धन प्राप्त हुए हैं,

राखु परोइ प्रभु अपुने मना ॥
उस ईश्वर को अपने मन में पिरोकर रख।

जिनि तेरी मन बनत बनाई ॥
हे मन ! जिस ईश्वर ने तेरी रचना की है,

ऊठत बैठत सद तिसहि धिआई ॥
उठते-बैठते हर वक्त उसका ध्यान करते रहना चाहिए।

तिसहि धिआइ जो एक अलखै ॥
हे नानक ! उस एक अदृश्य प्रभु का चिन्तन कर।

ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥
वह लोक-परलोक दोनों में तेरी रक्षा करेगा ॥४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

जिह प्रसादि करहि पुंन बहु दान ॥
जिसकी कृपा से तुम बड़ा दान-पुण्य करते हो,

मन आठ पहर करि तिस का धिआन ॥
हे मन ! आठों पहर उसका ही ध्यान करना चाहिए।

जिह प्रसादि तू आचार बिउहारी ॥
जिसकी कृपा से तू धार्मिक संस्कार एवं सांसारिक कर्म करता है,

तिसु प्रभ कउ सासि सासि चितारी ॥
अपने श्वास-श्वास से उस प्रभु का चिन्तन करना चाहिए।

जिह प्रसादि तेरा सुंदर रूपु ॥
जिसकी कृपा से तेरा सुन्दर रूप है,

सो प्रभु सिमरहु सदा अनूपु ॥
उस अनुपम प्रभु का हमेशा सिमरन करना चाहिए।

जिह प्रसादि तेरी नीकी जाति ॥
जिसकी दया से तुझे उच्च (मनुष्य) जाति मिली है,

सो प्रभु सिमरि सदा दिन राति ॥
सदा उस प्रभु का दिन-रात चिन्तन कर।

जिह प्रसादि तेरी पति रहै ॥
जिसकी कृपा से तेरी प्रतिष्ठा बरकरार रही है,

गुर प्रसादि नानक जसु कहै ॥५॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से उसकी महिमा किया कर ॥५॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

जिह प्रसादि सुनहि करन नाद ॥
जिसकी दया से तू कानों से शब्द सुनता है।

जिह प्रसादि पेखहि बिसमाद ॥
जिसकी दया से तू आश्चर्यजनक कौतुक देखता है।

जिह प्रसादि बोलहि अम्रित रसना ॥
जिसकी दया से तू अपनी जिव्हा से मीठे वचन बोलता है।

जिह प्रसादि सुखि सहजे बसना ॥
जिसकी कृपा से तू सहज ही सुखपूर्वक रहता है।

जिह प्रसादि हसत कर चलहि ॥
जिसकी दया से तेरे हाथ हिलते और काम करते हैं।

जिह प्रसादि स्मपूरन फलहि ॥
जिसकी दया से तेरे सम्पूर्ण काम सफल होते हैं।

जिह प्रसादि परम गति पावहि ॥
जिसकी दया से तुझे परमगति मिलती है।

जिह प्रसादि सुखि सहजि समावहि ॥
जिसकी दया से तुम सहज सुख में लीन हो जाओगे,

ऐसा प्रभु तिआगि अवर कत लागहु ॥
ऐसे प्रभु को छोड़कर तुम क्यों किसी दूसरे से लग रहे हो ?

गुर प्रसादि नानक मनि जागहु ॥६॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से अपने मन को ईश्वर की ओर जाग्रत कर ॥६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

जिह प्रसादि तूं प्रगटु संसारि ॥
जिसकी कृपा से तू दुनिया में लोकप्रिय हुआ है,

तिसु प्रभ कउ मूलि न मनहु बिसारि ॥
उस प्रभु को कभी अपने हृदय से न भुला।

जिह प्रसादि तेरा परतापु ॥
जिसकी कृपा से तेरा तेज-प्रताप बना है,

रे मन मूड़ तू ता कउ जापु ॥
हे मेरे मूर्ख मन ! तू उसकी आराधना करता रह।

जिह प्रसादि तेरे कारज पूरे ॥
जिसकी दया से तेरे समस्त कार्य सम्पूर्ण हुए हैं,

तिसहि जानु मन सदा हजूरे ॥
अपने हृदय में उसको सदा निकट समझ।

जिह प्रसादि तूं पावहि साचु ॥
जिसकी दया से तुझे सत्य प्राप्त होता है,

रे मन मेरे तूं ता सिउ राचु ॥
हे मेरे मन ! तू उससे प्रेम कर।

जिह प्रसादि सभ की गति होइ ॥
जिसकी कृपा से सबकी गति हो जाती है,

नानक जापु जपै जपु सोइ ॥७॥
हे नानक ! उस प्रभु के नाम का एक रस जाप करना चाहिए ॥७॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6

आपि जपाए जपै सो नाउ ॥
वही पुरुष ईश्वर का नाम जपता है, जिससे वह स्वयं जपाता है।

आपि गावाए सु हरि गुन गाउ ॥
केवल वही ईश्वर का यशोगान करता है, जिससे वह स्वयं गुणगान करवाता है।

प्रभ किरपा ते होइ प्रगासु ॥
प्रभु की कृपा से प्रकाश होता है।

प्रभू दइआ ते कमल बिगासु ॥
प्रभु की कृपा से हृदय-कमल प्रफुल्लित होता है।

प्रभ सुप्रसंन बसै मनि सोइ ॥
जब प्रभु सुप्रसन्न होता है, तो वह मनुष्य के हृदय में आ निवास करता है।

प्रभ दइआ ते मति ऊतम होइ ॥
प्रभु की दया से मनुष्य की बुद्धि उत्तम हो जाती है।

सरब निधान प्रभ तेरी मइआ ॥
हे प्रभु ! समस्त खजाने तेरी दया में हैं।

आपहु कछू न किनहू लइआ ॥
अपने आप किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

जितु जितु लावहु तितु लगहि हरि नाथ ॥
हे हरि-परमेश्वर ! तुम जहाँ प्राणियों को लगाते हो, वे उधर ही लग जाते हैं।

नानक इन कै कछू न हाथ ॥८॥६॥
हे नानक ! इन प्राणियों के वश में कुछ नहीं है ॥८॥६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 6