Sukhmani Sahib Ashtpadi 23 In Hindi Lyrics With Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23 In Hindi Lyrics With Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23 In Hindi Lyrics

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

सुखमनी साहिब असटपदी 23

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

सलोकु ॥

गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु ॥
गुरु ने ज्ञान रूपी सुरमा प्रदान किया है, जिससे अज्ञान के अंधेरे का नाश हो गया है।

हरि किरपा ते संत भेटिआ नानक मनि परगासु ॥१॥
हे नानक ! भगवान की कृपा से संत-गुरु मिला है,
जिससे मन में ज्ञान का प्रकाश हो गया है॥ १॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

असटपदी ॥
अष्टपदी।॥

संतसंगि अंतरि प्रभु डीठा ॥
संतों की संगति में अन्तर्मन में ही प्रभु के दर्शन कर लिए हैं।

नामु प्रभू का लागा मीठा ॥
प्रभु का नाम मुझे मधुर मीठा लगा है।

सगल समिग्री एकसु घट माहि ॥
समस्त सृष्टि एक परमात्मा के स्वरूप में है,

अनिक रंग नाना द्रिसटाहि ॥
जिसके विभिन्न प्रकार के अनेक रंग दिखाई दे रहे हैं।

नउ निधि अम्रितु प्रभ का नामु ॥
प्रभु का अमृत नाम नवनिधि है।

देही महि इस का बिस्रामु ॥
मानव शरीर में ही इसका निवास है।

सुंन समाधि अनहत तह नाद ॥
वहाँ शून्य समाधि में अनहद शब्द होता है।

कहनु न जाई अचरज बिसमाद ॥
इस आश्चर्यचकित एवं विस्माद का वर्णन नहीं किया जा सकता।

तिनि देखिआ जिसु आपि दिखाए ॥
जिसको ईश्वर स्वयं दिखाता है, वही इसको देखता है।

नानक तिसु जन सोझी पाए ॥१॥
हे नानक ! ऐसा पुरुष ज्ञान प्राप्त कर लेता है॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

सो अंतरि सो बाहरि अनंत ॥
वह अनन्त परमात्मा अन्तर्मन में भी है और बाहर भी विद्यमान है।

घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत ॥
भगवान कण-कण में मौजूद है।

धरनि माहि आकास पइआल ॥
वह धरती, गगन एवं पाताल में मौजूद है।

सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥
समस्त लोकों का वह पूर्ण पालनहार है।

बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
पारब्रह्म-प्रभु वनों, तृणों एवं पर्वतों में व्यापक है।

जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
जैसी उसकी आज्ञा होती है, वैसे ही जीव के कर्म हैं।

पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
भगवान पवन, जल एवं अग्नि में विद्यमान है।

चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥
वह चारों तरफ और दसों दिशाओं में समाया हुआ है।

तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
उससे भिन्न कोई स्थान नहीं।

गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
गुरु की कृपा से नानक ने सुख पा लिया है॥२॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

बेद पुरान सिम्रिति महि देखु ॥
उस भगवान को वेद, पुराण एवं स्मृतियों में देखो।

ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु ॥
चन्द्रमा, सूर्य एवं तारों में वही एक ईश्वर है।

बाणी प्रभ की सभु को बोलै ॥
प्रत्येक जीव प्रभु की वाणी बोलता है।

आपि अडोलु न कबहू डोलै ॥
वह अटल है और कभी विचलित नहीं होता।

सरब कला करि खेलै खेल ॥
सर्व कला रचकर (सृष्टि का) खेल खेलता है।

मोलि न पाईऐ गुणह अमोल ॥
उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, (क्योंकि) उसके गुण अमूल्य हैं।

सरब जोति महि जा की जोति ॥
ईश्वर की ज्योति समस्त ज्योतियों में प्रज्वलित है।

धारि रहिओ सुआमी ओति पोति ॥
प्रभु ने संसार का ताना-बाना अपने वश में किया हुआ है।

गुर परसादि भरम का नासु ॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से जिसके भ्रम का नाश हो जाता है,

नानक तिन महि एहु बिसासु ॥३॥
उसके भीतर यह दृढ़ विश्वास बन जाता है ॥३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

संत जना का पेखनु सभु ब्रहम ॥
संतजन हर जगह पर भगवान को ही देखते हैं।

संत जना कै हिरदै सभि धरम ॥
संतजनों के मन में सब धर्म ही होता है।

संत जना सुनहि सुभ बचन ॥
संतजन शुभ वचन सुनते हैं।

सरब बिआपी राम संगि रचन ॥
वे सर्वव्यापक राम में लीन रहते हैं।

जिनि जाता तिस की इह रहत ॥
जिस जिस संत-धर्मात्मा ने (ईश्वर को) समझ लिया है,
उसका जीवन-आचरण ही यह बन जाता है।

सति बचन साधू सभि कहत ॥
साधु सदैव सत्य वचन करता है।

जो जो होइ सोई सुखु मानै ॥
जो कुछ भी होता है, वह इसे सुख मानता है।

करन करावनहारु प्रभु जानै ॥
यह जानता है कि प्रभु समस्त कार्य करने वाला एवं कराने वाला है।

अंतरि बसे बाहरि भी ओही ॥
संतजनों हेतु ईश्वर भीतर-बाहर सर्वत्र बसता है।

नानक दरसनु देखि सभ मोही ॥४॥
हे नानक ! उसके दर्शन करके हरेक व्यक्ति मुग्ध हो जाता है ॥४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

आपि सति कीआ सभु सति ॥
ईश्वर सत्य है और उसकी सृष्टि-रचना भी सत्य है।

तिसु प्रभ ते सगली उतपति ॥
उस परमेश्वर से समूचा जगत् उत्पन्न हुआ है।

तिसु भावै ता करे बिसथारु ॥
जब उसे भला लगता है तो वह सृष्टि का प्रसार कर देता है।

तिसु भावै ता एकंकारु ॥
यदि एक ईश्वर को उपयुक्त लगे तो वह स्वयं ही एक रूप हो जाता है।

अनिक कला लखी नह जाइ ॥
उसकी अनेक कलाएँ (शक्तियां) हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।

जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
जिस किसी को वह चाहता है, उसे अपने साथ मिला लेता है।

कवन निकटि कवन कहीऐ दूरि ॥
वह पारब्रह्म किसी से दूर एवं किसी से निकट कहा जा सकता है ?

आपे आपि आप भरपूरि ॥
लेकिन ईश्वर स्वयं ही सर्वव्यापक है।

अंतरगति जिसु आपि जनाए ॥
हे नानक ! वह उस मनुष्य को (अपनी सर्वव्यापकता की) सूझ देता है,

नानक तिसु जन आपि बुझाए ॥५॥
जिसे (ईश्वर) स्वयं भीतरी उच्च अवस्था सुझा देता है ॥५॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

सरब भूत आपि वरतारा ॥
सारी दुनिया के लोगों में परमात्मा स्वयं ही मौजूद है।

सरब नैन आपि पेखनहारा ॥
सर्व नयनों द्वारा वह स्वयं ही देख रहा है।

सगल समग्री जा का तना ॥
यह सारी सृष्टि-रचना उसका शरीर है।

आपन जसु आप ही सुना ॥
वह अपनी महिमा स्वयं ही सुनता है।

आवन जानु इकु खेलु बनाइआ ॥
लोगों का आवागमन (जन्म-मरण) ईश्वर ने एक खेल रचा है।

आगिआकारी कीनी माइआ ॥
माया को उसने अपना आज्ञाकारी बनाया हुआ है।

सभ कै मधि अलिपतो रहै ॥
सबके भीतर होता हुआ भी प्रभु निर्लिप्त रहता है।

जो किछु कहणा सु आपे कहै ॥
जो कुछ कहना होता है, वह स्वयं ही कहता है।

आगिआ आवै आगिआ जाइ ॥
उसकी आज्ञानुसार प्राणी (दुनिया में) जन्म लेता है और आज्ञानुसार प्राण त्याग देता है।

नानक जा भावै ता लए समाइ ॥६॥
हे नानक ! जब उसे लुभाता है तो वह प्राणी को अपने साथ मिला लेता है॥ ६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

इस ते होइ सु नाही बुरा ॥
भगवान द्वारा जो कुछ भी होता है, दुनिया के लिए बुरा नहीं होता।

ओरै कहहु किनै कछु करा ॥
कहो, उस भगवान के अलावा कभी किसी ने कुछ किया है ?

आपि भला करतूति अति नीकी ॥
ईश्वर स्वयं भला है और सबसे भले उसके कर्म हैं।

आपे जानै अपने जी की ॥
अपने हृदय की बात वह स्वयं ही जानता है।

आपि साचु धारी सभ साचु ॥
वह स्वयं सत्य है और उसकी सृष्टि-रचना भी सत्य है।

ओति पोति आपन संगि राचु ॥
ताने-वाने की भाँति उसने स्वयं सृष्टि को अपने साथ मिलाया हुआ है।

ता की गति मिति कही न जाइ ॥
उसकी गति एवं विस्तार व्यक्त नहीं किए जा सकते।

दूसर होइ त सोझी पाइ ॥
यदि कोई दूसरा उस समान होता तो बह उसको समझ सकता।

तिस का कीआ सभु परवानु ॥
ईश्वर का किया हुआ लोगों को स्वीकार करना पड़ता है

गुर प्रसादि नानक इहु जानु ॥७॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से यह तथ्य समझो ॥ ७ ॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23

जो जानै तिसु सदा सुखु होइ ॥
जो व्यक्ति ईश्वर को समझता है, उसे सदैव सुख मिलता है।

आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ ॥
वह ईश्वर उसे अपने साथ मिला लेता है।

ओहु धनवंतु कुलवंतु पतिवंतु ॥
वह धनवान, कुलवान एवं मान-प्रतिष्ठा वाला बन जाता है।

जीवन मुकति जिसु रिदै भगवंतु ॥
जिस जीव के हृदय में भगवान बसता है, वह जीवित ही मुक्ति पा लेता है।

धंनु धंनु धंनु जनु आइआ ॥
उस महापुरुष का दुनिया में जन्म लेना धन्य-धन्य है,

जिसु प्रसादि सभु जगतु तराइआ ॥
जिसकी कृपा से सारे जगत् का उद्धार हो जाता है।

जन आवन का इहै सुआउ ॥
महापुरुष के आगमन का यही मनोरथ है कि

जन कै संगि चिति आवै नाउ ॥
उसकी संगति में रहकर दूसरे प्राणियों को ईश्वर का नाम-स्मरण आता है।

आपि मुकतु मुकतु करै संसारु ॥
ऐसा महापुरुष स्वयं मुक्त होकर संसार को भी मुक्त करा देता है।

नानक तिसु जन कउ सदा नमसकारु ॥८॥२३॥
हे नानक ! ऐसे महापुरुष को हमारा सदैव प्रणाम है ॥८॥२३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 23