Sukhmani Sahib Ashtpadi 22 Hindi Lyrics & Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22 Hindi Lyrics, and Meaning
सुखमनी साहिब असटपदी 22
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
सलोकु ॥
जीअ जंत के ठाकुरा आपे वरतणहार ॥
हे जीव-जन्तुओं के पालनहार परमेश्वर ! तू स्वयं ही सर्वव्यापक है।
नानक एको पसरिआ दूजा कह द्रिसटार ॥१॥
हे नानक ! एक ईश्वर ही सर्वत्र व्यापक है।
इसके अलावा दूसरा कोई कहाँ दिखाई देता है॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
असटपदी ॥
अष्टपदी ॥
आपि कथै आपि सुननैहारु ॥
वह स्वयं ही वक्ता है और स्वयं ही श्रोता है।
आपहि एकु आपि बिसथारु ॥
वह स्वयं ही एक है और स्वयं ही उसका विस्तार है।
जा तिसु भावै ता स्रिसटि उपाए ॥
जब उसे भला लगता है तो वह सृष्टि की रचना कर देता है।
आपनै भाणै लए समाए ॥
अपनी इच्छानुसार वह इसे स्वयं में लीन कर देता है।
तुम ते भिंन नही किछु होइ ॥
हे परमात्मा ! तुम्हारे बिना कुछ भी किया नहीं जा सकता।
आपन सूति सभु जगतु परोइ ॥
तूने समूचे जगत् को एक सूत्र में पिरोया हुआ है।
जा कउ प्रभ जीउ आपि बुझाए ॥
जिसे पूज्य परमेश्वर स्वयं ज्ञान देता है,
सचु नामु सोई जनु पाए ॥
वह मनुष्य सत्यनाम प्राप्त कर लेता है।
सो समदरसी तत का बेता ॥
वह समदर्शी तथा तत्वज्ञाता है।
नानक सगल स्रिसटि का जेता ॥१॥
हे नानक ! वह समूचे जगत् को विजयी करने वाला है ॥१॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
जीअ जंत्र सभ ता कै हाथ ॥
समस्त जीव-जन्तु उस परमात्मा के वश में हैं।
दीन दइआल अनाथ को नाथु ॥
वह दीनदयालु एवं अनाथों का नाथ है।
जिसु राखै तिसु कोइ न मारै ॥
जिसकी परमात्मा रक्षा करता है, उसे कोई भी मार नहीं सकता।
सो मूआ जिसु मनहु बिसारै ॥
जिसे वह अपने हृदय से विस्मृत कर देता है, वह पूर्व ही मृत है।
तिसु तजि अवर कहा को जाइ ॥
उसे छोड़कर कोई मनुष्य दूसरे के पास क्यों जाए?
सभ सिरि एकु निरंजन राइ ॥
सबके सिर पर एक निरंजन प्रभु है।
जीअ की जुगति जा कै सभ हाथि ॥
जिसके वश में प्राणी की समस्त युक्तियां हैं
अंतरि बाहरि जानहु साथि ॥
समझ ले कि वह भीतर एवं बाहर तेरे साथ है।
गुन निधान बेअंत अपार ॥
उस गुणों के भण्डार, अनंत एवं अपार परमात्मा पर
नानक दास सदा बलिहार ॥२॥
दास नानक सदैव बलिहारी जाता है॥ २॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
पूरन पूरि रहे दइआल ॥
दयालु परमात्मा हर जगह पर मौजूद है और
सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
समस्त जीवों पर कृपालु होता है।
अपने करतब जानै आपि ॥
अपनी लीला वह स्वयं ही जानता है।
अंतरजामी रहिओ बिआपि ॥
अन्तर्यामी प्रभु सबमें समाया हुआ है।
प्रतिपालै जीअन बहु भाति ॥
वह अनेक विधियों से जीवों का पोषण करता है।
जो जो रचिओ सु तिसहि धिआति ॥
जिस किसी की भी उसने उत्पत्ति की है, वह उसका ध्यान करता रहता है।
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
जो कोई भी भगवान को भला लगता है, उसे वह अपने साथ मिला लेता है।
भगति करहि हरि के गुण गाइ ॥
ऐसा भक्त हरि-प्रभु की भक्ति एवं गुणस्तुति करता है।
मन अंतरि बिस्वासु करि मानिआ ॥
हे नानक ! जिसने मन में श्रद्धा धारण करके भगवान को माना है,
करनहारु नानक इकु जानिआ ॥३॥
उसने एक सृष्टिकर्ता प्रभु को ही जाना है॥ ३॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
जनु लागा हरि एकै नाइ ॥
जो भक्त भगवान के एक नाम में लगा है,
तिस की आस न बिरथी जाइ ॥
उसकी आशा व्यर्थ नहीं जाती।
सेवक कउ सेवा बनि आई ॥
सेवक को सेवा करनी ही शोभा देती है।
हुकमु बूझि परम पदु पाई ॥
प्रभु के हुक्म का पालन करके वह परम पद (मोक्ष) प्राप्त कर लेता है।
इस ते ऊपरि नही बीचारु ॥
उसे इससे ऊपर और कोई भी विचार नहीं आता
जा कै मनि बसिआ निरंकारु ॥
जिसके हृदय में निरंकार प्रभु बसता है।
बंधन तोरि भए निरवैर ॥
वह अपने बन्धन तोड़कर निर्वैर हो जाता है
अनदिनु पूजहि गुर के पैर ॥
और दिन-रात गुरु के चरणों की पूजा-अर्चना करता है।
इह लोक सुखीए परलोक सुहेले ॥
वह इहलोक में सुखी एवं परलोक में आनंद-प्रसन्न होता है।
नानक हरि प्रभि आपहि मेले ॥४॥
हे नानक ! हरि-प्रभु उसे अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
साधसंगि मिलि करहु अनंद ॥
साध संगत में मिलकर आनंद करो
गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥
और परमानन्द प्रभु की गुणस्तुति करते रहो।
राम नाम ततु करहु बीचारु ॥
राम-नाम के तत्व का विचार करो।
द्रुलभ देह का करहु उधारु ॥
इस तरह दुर्लभ मानव शरीर का कल्याण कर लो।
अम्रित बचन हरि के गुन गाउ ॥
परमेश्वर की महिमा के अमृत वचन गायन करो।
प्रान तरन का इहै सुआउ ॥
अपनी आत्मा का कल्याण करने की यही विधि है।
आठ पहर प्रभ पेखहु नेरा ॥
आठ पहर प्रभु को निकट देखो।
मिटै अगिआनु बिनसै अंधेरा ॥
(इससे) अज्ञान मिट जाएगा और अन्धकार का नाश हो जाएगा।
सुनि उपदेसु हिरदै बसावहु ॥
गुरु का उपदेश सुनकर इसे अपने हृदय में बसाओ।
मन इछे नानक फल पावहु ॥५॥
हे नानक ! इस तरह तुझे मनोवांछित फल प्राप्त होगा ॥५॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि ॥
लोक एवं परलोक दोनों को संवार लो
राम नामु अंतरि उरि धारि ॥
राम के नाम को अपने हृदय में बसाओ ।
पूरे गुर की पूरी दीखिआ ॥
पूर्ण गुरु का पूर्ण उपदेश है।
जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ ॥
जिसके हृदय में यह बसता है, वह सत्य का निरीक्षण कर लेता है।
मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ ॥
अपने मन एवं तन से वृति लगाकर प्रभु के नाम का जाप करो।
दूखु दरदु मन ते भउ जाइ ॥
इस तरह दुःख-दर्द एवं भय मन से निवृत्त हो जाएँगे।
सचु वापारु करहु वापारी ॥
हे व्यापारी ! तू सच्चा व्यापार कर।
दरगह निबहै खेप तुमारी ॥
तेरा सौदा ईश्वर के दरबार में सुरक्षित पहुँच जाएगा।
एका टेक रखहु मन माहि ॥
एक ईश्वर का सहारा अपने हृदय में कायम कर।
नानक बहुरि न आवहि जाहि ॥६॥
हे नानक ! तेरा आवागमन (जन्म-मरण का चक्र) पुनः नहीं होगा।॥ ६ ॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 22
तिस ते दूरि कहा को जाइ ॥
उससे दूर कोई मनुष्य कहाँ जा सकता है ?
उबरै राखनहारु धिआइ ॥
रक्षक परमात्मा का चिन्तन करने से मनुष्य बच जाता है।
निरभउ जपै सगल भउ मिटै ॥
उस निर्भय प्रभु का जाप करने से सब भय मिट जाते हैं।
प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै ॥
प्रभु की कृपा से जीव की मुक्ति हो जाती है।
जिसु प्रभु राखै तिसु नाही दूख ॥
जिसकी ईश्वर रक्षा करता है, उसे कोई दुःख नहीं लगता।
नामु जपत मनि होवत सूख ॥
नाम की आराधना करने से मन को सुख प्राप्त हो जाता है।
चिंता जाइ मिटै अहंकारु ॥
उससे चिन्ता दूर हो जाती है और अहंकार मिट जाता है।
तिसु जन कउ कोइ न पहुचनहारु ॥
उस प्रभु के भक्त की कोई समानता नहीं कर सकता।
सिर ऊपरि ठाढा गुरु सूरा ॥
हे नानक ! जिसके सिर पर शूरवीर गुरु खड़ा हो,
नानक ता के कारज पूरा ॥७॥
उसके तमाम कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।॥७॥
मति पूरी अम्रितु जा की द्रिसटि ॥
जिस (गुरु) की बुद्धि पूर्ण है और जिसकी दृष्टि से अमृत बरसता रहता है,
दरसनु पेखत उधरत स्रिसटि ॥
उनके दर्शन करके दुनिया का कल्याण हो जाता है।
चरन कमल जा के अनूप ॥
उनके चरण कमल अनूप हैं।
सफल दरसनु सुंदर हरि रूप ॥
उनके दर्शन सफल हैं और परमेश्वर जैसा अति सुन्दर उनका रूप है।
धंनु सेवा सेवकु परवानु ॥
उनकी सेवा धन्य है एवं उनका सेवक स्वीकृत है।
अंतरजामी पुरखु प्रधानु ॥
वह (गुरु) अंतर्यामी एवं प्रधान पुरुष है।
जिसु मनि बसै सु होत निहालु ॥
जिसके हृदय में गुरु निवास करते हैं, वह कृतार्थ हो जाता है।
ता कै निकटि न आवत कालु ॥
काल (मृत्यु) उसके निकट नहीं आता।
अमर भए अमरा पदु पाइआ ॥
वे अमर हो गए हैं और अमर पद प्राप्त कर लिया है
साधसंगि नानक हरि धिआइआ ॥८॥२२॥
हे नानक ! जिन्होंने साधुओं की संगति में भगवान का ध्यान किया है ॥८॥२२॥