Sukhmani Sahib Ashtpadi 2 Hindi Lyrics & Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2 Hindi Lyrics, and Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
सुखमनी साहिब असटपदी 2
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
सलोकु ॥
दीन दरद दुख भंजना घटि घटि नाथ अनाथ ॥
हे दीनों के दर्द एवं दुःख का नाश करने वाले प्रभु !
हे प्रत्येक शरीर में व्यापक स्वामी । हे अनाथों के नाथ परमात्मा !
सरणि तुम्हारी आइओ नानक के प्रभ साथ ॥१॥
मैं तेरी शरण में आया हूँ, आप प्रभु मेरे (नानक के) साथ हो।॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
असटपदी ॥
अष्टपदी।
जह मात पिता सुत मीत न भाई ॥
जहाँ माता, पिता, पुत्र, मित्र एवं भाई, कोई (सहायक) नहीं,
मन ऊहा नामु तेरै संगि सहाई ॥
वहाँ हे मेरे मन ! ईश्वर का नाम तेरे साथ सहायक होगा।
जह महा भइआन दूत जम दलै ॥
जहाँ महा भयानक यमदूत तुझे कुचलेगा,
तह केवल नामु संगि तेरै चलै ॥
वहाँ केवल प्रभु का नाम ही तेरे साथ जाएगा।
जह मुसकल होवै अति भारी ॥
जहाँ बहुत भारी मुश्किल होगी ,
हरि को नामु खिन माहि उधारी ॥
वहाँ ईश्वर का नाम एक क्षण में ही तेरी रक्षा करेगा।
अनिक पुनहचरन करत नही तरै ॥
अनेकों धार्मिक कर्म करने से भी मनुष्य की पापों से मुक्ति नहीं होती,
हरि को नामु कोटि पाप परहरै ॥
परन्तु ईश्वर का नाम करोड़ों ही पापों का नाश कर देता है।
गुरमुखि नामु जपहु मन मेरे ॥
हे मेरे मन ! गुरु के सान्निध्य में रहकर प्रभु के नाम का जाप कर।
नानक पावहु सूख घनेरे ॥१॥
हे नानक ! ऐसे तुझे बहुत सुख प्राप्त होगा ॥१॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
सगल स्रिसटि को राजा दुखीआ ॥
सारे संसार का राजा (बनकर भी मनुष्य) दुखी होता है।
हरि का नामु जपत होइ सुखीआ ॥
लेकिन ईश्वर का नाम-स्मरण करने से सुखी हो जाता है।
लाख करोरी बंधु न परै ॥
चाहे मनुष्य लाखों-करोड़ बन्धनों में फँसा हो, (किन्तु)
हरि का नामु जपत निसतरै ॥
प्रभु के नाम का जाप करने से वह मुक्त हो जाता है।
अनिक माइआ रंग तिख न बुझावै ॥
धन-दौलत की अत्याधिक खुशियाँ मनुष्य की तृष्णा को नहीं मिटा सकते। (लेकिन)
हरि का नामु जपत आघावै ॥
ईश्वर का नाम-स्मरण करने से वह तृप्त हो जाता है।
जिह मारगि इहु जात इकेला ॥
जिस (यम) मार्ग पर प्राणी अकेला जाता है,
तह हरि नामु संगि होत सुहेला ॥
वहाँ ईश्वर का नाम सुखदायक होता है।
ऐसा नामु मन सदा धिआईऐ ॥
हे मेरे मन ! ऐसा नाम सदा स्मरण करो,
नानक गुरमुखि परम गति पाईऐ ॥२॥
हे नानक ! गुरु की शरण में नाम-स्मरण करने से परमगति प्राप्त हो जाती है ॥२॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
छूटत नही कोटि लख बाही ॥
जहाँ लाखों-करोड़ों भुजाओं के होते हुए भी मनुष्य की मुक्ति नहीं हो सकती,
नामु जपत तह पारि पराही ॥
वहाँ नाम-स्मरण करने से मनुष्य का उद्धार हो जाता है।
अनिक बिघन जह आइ संघारै ॥
जहाँ अनेक विघ्न (विपत्तियाँ) आकर मनुष्य को नष्ट करती हैं,
हरि का नामु ततकाल उधारै ॥
वहाँ प्रभु का नाम तत्काल उसकी रक्षा करता है।
अनिक जोनि जनमै मरि जाम ॥
जो व्यक्ति अनेक योनियों में जन्मता-मरता रहता है,
नामु जपत पावै बिस्राम ॥
वह प्रभु के नाम का जाप करने से सुख प्राप्त कर लेता है।
हउ मैला मलु कबहु न धोवै ॥
अहंकार से मैला हुआ प्राणी कभी यह मैल धो नहीं सकता,
हरि का नामु कोटि पाप खोवै ॥
(परन्तु) ईश्वर का नाम करोड़ों पापों को नाश कर देता है।
ऐसा नामु जपहु मन रंगि ॥
हे मेरे मन ! ईश्वर के ऐसे नाम को प्रेमपूर्वक स्मरण करो।
नानक पाईऐ साध कै संगि ॥३॥
हे नानक ! ईश्वर का नाम संतों की संगति में ही प्राप्त होता है ॥३॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
जिह मारग के गने जाहि न कोसा ॥
जिस (जीवन रूपी) मार्ग के कोस इत्यादि गिने नहीं जा सकते,
हरि का नामु ऊहा संगि तोसा ॥
ईश्वर का नाम वहाँ तेरे साथ राशि-पूंजी होगा।
जिह पैडै महा अंध गुबारा ॥
जिस मार्ग में घोर-अंधकार है,
हरि का नामु संगि उजीआरा ॥
यहाँ ईश्वर का नाम तेरे साथ प्रकाश होगा।
जहा पंथि तेरा को न सिञानू ॥
जिस मार्ग पर तेरा कोई जानकार नहीं,
हरि का नामु तह नालि पछानू ॥
वहाँ ईश्वर का नाम तेरे साथ जानने वाला (जानकार) होगा।
जह महा भइआन तपति बहु घाम ॥
जहाँ अत्याधिक भयानक गर्मी एवं अत्याधिक धूप है,
तह हरि के नाम की तुम ऊपरि छाम ॥
वहाँ ईश्वर के नाम की तुझ पर छाया होगी।
जहा त्रिखा मन तुझु आकरखै ॥
हे प्राणी ! जहाँ (माया की) प्यास तुझे खींचती है,
तह नानक हरि हरि अम्रितु बरखै ॥४॥
वहाँ हे नानक ! हरि-परमेश्वर के नाम के अमृत की वर्षा होती है ॥४॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
भगत जना की बरतनि नामु ॥
ईश्वर का नाम भक्तजनों हेतु व्यावहारिक सामग्री है।
संत जना कै मनि बिस्रामु ॥
ईश्वर का नाम संतजनों के मन को सुख विश्राम देता है।
हरि का नामु दास की ओट ॥
ईश्वर का नाम उसके सेवक का सहारा है।
हरि कै नामि उधरे जन कोटि ॥
ईश्वर के नाम द्वारा करोड़ों ही प्राणियों का कल्याण हो गया है।
हरि जसु करत संत दिनु राति ॥
संतजन दिन-रात हरि का यशोगान करते रहते हैं।
हरि हरि अउखधु साध कमाति ॥
संत हरि-परमेश्वर के नाम को अपनी औषधि के रूप में उपयोग करते हैं।
हरि जन कै हरि नामु निधानु ॥
ईश्वर का नाम ईश्वर के सेवक का खजाना है।
पारब्रहमि जन कीनो दान ॥
पारब्रह्म ने उसे यह दान किया है।
मन तन रंगि रते रंग एकै ॥
जो मन एवं तन से एक ईश्वर के प्रेम में रंगे हुए हैं।
नानक जन कै बिरति बिबेकै ॥५॥
हे नानक ! उन दासों की वृत्ति ज्ञान वाली हुई है॥ ५ ॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
हरि का नामु जन कउ मुकति जुगति ॥
भगवान का नाम ही भक्त हेतु मुक्ति का साधन है।
हरि कै नामि जन कउ त्रिपति भुगति ॥
भगवान का भक्त उसके नाम-भोजन से तृप्त हो जाता है।
हरि का नामु जन का रूप रंगु ॥
भगवान का नाम उसके भक्त का सौन्दर्य एवं हर्ष है।
हरि नामु जपत कब परै न भंगु ॥
भगवान के नाम का जाप करने से मनुष्य को कभी बाधा नहीं पड़ती।
हरि का नामु जन की वडिआई ॥
भगवान का नाम उसके भक्त की मान-प्रतिष्ठा है।
हरि कै नामि जन सोभा पाई ॥
भगवान के नाम द्वारा उसके भक्त को दुनिया में शोभा प्राप्त होती है।
हरि का नामु जन कउ भोग जोग ॥
भगवान का नाम ही भक्त के लिए योग (साधन) एवं गृहस्थी का माया-भोग है।
हरि नामु जपत कछु नाहि बिओगु ॥
भगवान के नाम का जाप करने से उसे कोई दुःख-क्लेश नहीं होता।
जनु राता हरि नाम की सेवा ॥
भगवान का भक्त उसके नाम की सेवा में ही मग्न रहता है।
नानक पूजै हरि हरि देवा ॥६॥
हे नानक ! (भक्त सदैव) प्रभुदेवा परमेश्वर की ही पूजा करता है ॥६॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 2
हरि हरि जन कै मालु खजीना ॥
हरि-परमेश्वर का नाम भक्त के लिए धन का भण्डार है।
हरि धनु जन कउ आपि प्रभि दीना ॥
हरि नाम रूपी धन प्रभु ने स्वयं अपने भक्त को दिया है।
हरि हरि जन कै ओट सताणी ॥
हरि-परमेश्वर का नाम उसके भक्त का सशक्त सहारा है।
हरि प्रतापि जन अवर न जाणी ॥
हरि के प्रताप से भक्तजन किसी दूसरे को नहीं जानता।
ओति पोति जन हरि रसि राते ॥
ताने-बाने की भाँति प्रभु का भक्त हरि-रस में मग्न रहता है।
सुंन समाधि नाम रस माते ॥
शून्य समाधि में लीन वह नाम-रस में मस्त रहता है।
आठ पहर जनु हरि हरि जपै ॥
भक्त दिन के आठ पहर हरि-परमेश्वर के नाम का ही जाप करता रहता है।
हरि का भगतु प्रगट नही छपै ॥
हरि का भक्त दुनिया में लोकप्रिय हो जाता है, छिपा नहीं रहता।
हरि की भगति मुकति बहु करे ॥
भगवान की भक्ति अनेकों को मोक्ष प्रदान करती है।
नानक जन संगि केते तरे ॥७॥
हे नानक ! भक्तों की संगति में कितने ही भवसागर से पार हो जाते हैं॥ ७ ॥
पारजातु इहु हरि को नाम ॥
हरि का नाम ही कल्पवृक्ष है।
कामधेन हरि हरि गुण गाम ॥
हरि-परमेश्वर के नाम का यशोगान करना ही कामधेनु है।
सभ ते ऊतम हरि की कथा ॥
हरि की कथा सबसे उत्तम है।
नामु सुनत दरद दुख लथा ॥
भगवान का नाम सुनने से दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं।
नाम की महिमा संत रिद वसै ॥
नाम की महिमा संतों के हृदय में निवास करती है।
संत प्रतापि दुरतु सभु नसै ॥
संतों के तेज प्रताप से समस्त पाप नाश हो जाते हैं।
संत का संगु वडभागी पाईऐ ॥
संतों की संगति सौभाग्य से ही प्राप्त होती है।
संत की सेवा नामु धिआईऐ ॥
संतों की सेवा से नाम-सिमरन किया जाता है।
नाम तुलि कछु अवरु न होइ ॥
ईश्वर के नाम के तुल्य कोई दूसरा नहीं।
नानक गुरमुखि नामु पावै जनु कोइ ॥८॥२॥
हे नानक ! कोई विरला गुरमुख ही नाम को प्राप्त करता है॥ ८ ॥ २॥