Sukhmani Sahib Ashtpadi 3 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3 Hindi Lyrics, and Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

सुखमनी साहिब असटपदी 3

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

सलोकु ॥

बहु सासत्र बहु सिम्रिती पेखे सरब ढढोलि ॥
बहुत सारे शास्त्र एवं बहुत सारी स्मृतियाँ देखी हैं
और उन सबकी (भलीभाँति) खोज की है।

पूजसि नाही हरि हरे नानक नाम अमोल ॥१॥
(लेकिन) यह ईश्वर के नाम की बराबरी नहीं कर सकते।
हे नानक ! हरि-परमेश्वर का नाम अमूल्य है ॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

असटपदी ॥
अष्टपदी ॥

जाप ताप गिआन सभि धिआन ॥
जप, तपस्या, समस्त ज्ञान एवं ध्यान,

खट सासत्र सिम्रिति वखिआन ॥
छ : शास्त्रों के ग्रंथ एवं स्मृतियों का बखान,

जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ ॥
योग का साधन एवं धार्मिक कर्म-काण्डों का करना,

सगल तिआगि बन मधे फिरिआ ॥
प्रत्येक वस्तु को त्याग देना एवं वन में भटकना,

अनिक प्रकार कीए बहु जतना ॥
अनेक प्रकार के बहुत यत्न करे,

पुंन दान होमे बहु रतना ॥
दान-पुण्य, होम यज्ञ एवं अत्याधिक दान करना,

सरीरु कटाइ होमै करि राती ॥
शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटना एवं उनकी अग्नि में आहुति देना,

वरत नेम करै बहु भाती ॥
अनेक प्रकार के व्रत एवं नियमों की पालना,

नही तुलि राम नाम बीचार ॥
लेकिन यह सभी राम के नाम की आराधना के तुल्य नहीं हैं।

नानक गुरमुखि नामु जपीऐ इक बार ॥१॥
हे नानक ! (चाहे) यह नाम एक बार ही गुरु की शरण में जपा जाए॥ १॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

नउ खंड प्रिथमी फिरै चिरु जीवै ॥
इन्सान चाहे पृथ्वी के नौ खण्डों पर भ्रमण करे,
चिरकाल (लम्बी आयु) तक जीता रहे,

महा उदासु तपीसरु थीवै ॥
वह महा निर्वाण एवं तपस्वी हो जाए और

अगनि माहि होमत परान ॥
अपने शरीर को अग्नि में होम कर दे,

कनिक अस्व हैवर भूमि दान ॥
वह सोना, घोड़े एवं भूमिदान कर दें,

निउली करम करै बहु आसन ॥
वह निउली कर्म (योगासन का रूप) और बहुत सारे योगासन करें,

जैन मारग संजम अति साधन ॥
वह जैनियों के मार्ग पर चलकर अत्यंत कठिन साधन तथा तपस्या करें,

निमख निमख करि सरीरु कटावै ॥
वह अपने शरीर को छोटा-छोटा करके कटना दे,

तउ भी हउमै मैलु न जावै ॥
तो भी उसके अहंकार की मैल दूर नहीं होती।

हरि के नाम समसरि कछु नाहि ॥
भगवान के नाम के बराबर कोई वस्तु नहीं।

नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि ॥२॥
हे नानक ! गुरु के माध्यम से भगवान के
नाम का जाप करने से इन्सान को मुक्ति मिल जाती है। ॥२॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

मन कामना तीरथ देह छुटै ॥
कुछ लोगों की मनोकामना होती है
कि किसी तीर्थ-स्थान पर शरीर त्यागा जाए

गरबु गुमानु न मन ते हुटै ॥
परन्तु (फिर भी) मनुष्य का अहंकार
एवं अभिमान मन से दूर नहीं होते।

सोच करै दिनसु अरु राति ॥
चाहे मनुष्य दिन-रात पवित्रता करता है

मन की मैलु न तन ते जाति ॥
परन्तु मन की मैल उसके शरीर से दूर नहीं होती।

इसु देही कउ बहु साधना करै ॥
चाहे मनुष्य अपने शरीर से बहुत संयम-साधना करता है,

मन ते कबहू न बिखिआ टरै ॥
फिर भी माया के बुरे विकार उसके मन को नहीं त्यागते।

जलि धोवै बहु देह अनीति ॥
चाहे मनुष्य इस नश्वर शरीर को कई बार पानी से साफ करता है,

सुध कहा होइ काची भीति ॥
तो भी (यह शरीर रूपी) कच्ची दीवार कहीं पवित्र हो सकती हैं?

मन हरि के नाम की महिमा ऊच ॥
हे मेरे मन ! हरि के नाम की महिमा बहुत ऊँची है।

नानक नामि उधरे पतित बहु मूच ॥३॥
हे नानक ! (प्रभु के ) नाम से बहुत सारे पापी मुक्त हो गए हैं ॥३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

बहुतु सिआणप जम का भउ बिआपै ॥
अधिक चतुराई के कारण मनुष्य को मृत्यु का भय आ दबोचता है।

अनिक जतन करि त्रिसन ना ध्रापै ॥
अनेक यत्न करने से भी तृष्णा नहीं बुझती।

भेख अनेक अगनि नही बुझै ॥
अनेकों धार्मिक वेष बदलने से (तृष्णा की) अग्नि नहीं बुझती।

कोटि उपाव दरगह नही सिझै ॥
(ऐसे) करोड़ों ही उपायों द्वारा मनुष्य प्रभु के दरबार में मुक्त नहीं होता।

छूटसि नाही ऊभ पइआलि ॥
वह चाहे आकाश में चले जाएँ अथवा पाताल में चले जाएँ, उनकी मुक्ति नहीं होती,

मोहि बिआपहि माइआ जालि ॥
जो व्यक्ति मोह के कारण माया के जाल में फँसते हैं।

अवर करतूति सगली जमु डानै ॥
मनुष्य की दूसरी सब करतूतों पर यमराज उन्हें दण्ड देता है।

गोविंद भजन बिनु तिलु नही मानै ॥
(लेकिन) गोविन्द के भजन के बिना मृत्यु तनिकमात्र भी परवाह नहीं करती।

हरि का नामु जपत दुखु जाइ ॥
भगवान के नाम का जाप करने से हर प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं

नानक बोलै सहजि सुभाइ ॥४॥
नानक सहज स्वभाव यही बोलता है । ॥४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

चारि पदारथ जे को मागै ॥
यदि कोई व्यक्ति चार पदार्थों-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का अभिलाषी हो

साध जना की सेवा लागै ॥
तो उसे संतजनों की सेवा में लगना चाहिए।

जे को आपुना दूखु मिटावै ॥
यदि कोई व्यक्ति अपना दुःख मिटाना चाहता है तो

हरि हरि नामु रिदै सद गावै ॥
उसे अपने हृदय में हरि-परमेश्वर का नाम सदैव स्मरण करना चाहिए।

जे को अपुनी सोभा लोरै ॥
यदि कोई व्यक्ति अपनी शोभा चाहता हो तो

साधसंगि इह हउमै छोरै ॥
वह संतों की संगति में रहकर इस अहंकार को त्याग दे।

जे को जनम मरण ते डरै ॥
यदि कोई व्यक्ति जन्म-मरण के दुःख से डरता है,

साध जना की सरनी परै ॥
तो उसे संतजनों की शरण लेनी चाहिए।

जिसु जन कउ प्रभ दरस पिआसा ॥
जिस व्यक्ति को परमात्मा के दर्शनों की तीव्र लालसा है,

नानक ता कै बलि बलि जासा ॥५॥
हे नानक ! मैं उस पर सदा कुर्बान जाता हूँ ॥५॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु ॥
समस्त पुरुषों में वहीं पुरुष प्रधान है

साधसंगि जा का मिटै अभिमानु ॥
जिस पुरुष का सत्संग में रहकर अभिमान मिट जाता है।

आपस कउ जो जाणै नीचा ॥
जो पुरुष अपने आपको निम्न (विनीत) जानता है,

सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥
वह सबसे भला (ऊँचा) समझा जाता है।

जा का मनु होइ सगल की रीना ॥
जिस पुरुष का मन सबके चरणों की धूलि बन जाता है,

हरि हरि नामु तिनि घटि घटि चीना ॥
वह हरि-परमेश्वर के नाम को प्रत्येक हृदय में देखता है।

मन अपुने ते बुरा मिटाना ॥
जो अपने मन से बुराई को मिटा देता है,

पेखै सगल स्रिसटि साजना ॥
वह सारी सृष्टि को अपना मित्र देखता है।

सूख दूख जन सम द्रिसटेता ॥
हे नानक ! जो पुरुष सुख-दुःख को एक समान देखता है,

नानक पाप पुंन नही लेपा ॥६॥
वह पाप-पुण्य से निर्लिप्त रहता है ॥६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

निरधन कउ धनु तेरो नाउ ॥
हे नाथ ! निर्धन के लिए तेरा नाम ही धन-दौलत है।

निथावे कउ नाउ तेरा थाउ ॥
निराश्रित को तेरा नाम ही आश्रय है।

निमाने कउ प्रभ तेरो मानु ॥
हे प्रभु ! निरादरों का तू आदर है।

सगल घटा कउ देवहु दानु ॥
तू ही समस्त प्राणियों को दान देता है।

करन करावनहार सुआमी ॥
हे जगत् के स्वामी ! तुम स्वयं ही सब कुछ करते
एवं स्वयं ही जीवो से करवाते हो।

सगल घटा के अंतरजामी ॥
तू बड़ा अन्तर्यामी है।

अपनी गति मिति जानहु आपे ॥
हे ठाकुर ! अपनी गति एवं अपनी मर्यादा तुम स्वयं ही जानते हो।

आपन संगि आपि प्रभ राते ॥
हे प्रभु ! अपने आप से तुम स्वयं ही रंगे हुए हो।

तुम्हरी उसतति तुम ते होइ ॥
हे ईश्वर ! अपनी महिमा केवल तुम ही कर सकते हो।

नानक अवरु न जानसि कोइ ॥७॥
हे नानक ! कोई दूसरा तेरी महिमा को नहीं जानता ॥७॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3

सरब धरम महि स्रेसट धरमु ॥
समस्त धर्मों में सर्वोपरि धर्म है की

हरि को नामु जपि निरमल करमु ॥
ईश्वर के नाम का जाप करना एवं पवित्र कर्म करना।

सगल क्रिआ महि ऊतम किरिआ ॥
समस्त धार्मिक क्रियाओं में सर्वश्रेष्ठ क्रिया है की

साधसंगि दुरमति मलु हिरिआ ॥
सत्संग में मिलकर दुर्बुद्धि की मैल को धो फेंकना।

सगल उदम महि उदमु भला ॥
समस्त प्रयासों में उत्तम प्रयास यही है कि

हरि का नामु जपहु जीअ सदा ॥
सदा मन में हरि के नाम का जाप करते रहो।

सगल बानी महि अम्रित बानी ॥
समस्त वाणियों में अमृत वाणी है की

हरि को जसु सुनि रसन बखानी ॥
ईश्वर की महिमा सुनो एवं इसको जिव्हा से उच्चारण करो ।

सगल थान ते ओहु ऊतम थानु ॥
हे नानक ! समस्त स्थानों में वह स्थान उत्तम है,

नानक जिह घटि वसै हरि नामु ॥८॥३॥
जिसमें ईश्वर का नाम निवास करता है ॥८॥३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 3