Sukhmani Sahib Ashtpadi 16 Hindi Lyrics & Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16 Hindi Lyrics, and Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
सुखमनी साहिब असटपदी 16
सलोकु ॥
रूपु न रेख न रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन ॥
परमेश्वर का न कोई रूप अथवा चिन्ह है
और न ही कोई रंग है। वह माया के तीनों गुणों से परे है।
तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन ॥१॥
हे नानक ! परमात्मा स्वयं उस पुरुष को समझाता है,
जिस पर स्वयं प्रसन्न होता है॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
असटपदी ॥
अष्टपदी ॥
अबिनासी प्रभु मन महि राखु ॥
(हे जीव !) अपने मन में अनश्वर प्रभु को याद रख
मानुख की तू प्रीति तिआगु ॥
और मनुष्य का प्रेम (मोह) त्याग दे।
तिस ते परै नाही किछु कोइ ॥
उससे परे कोई वस्तु नहीं।
सरब निरंतरि एको सोइ ॥
वह एक ईश्वर समस्त जीव-जन्तुओं के भीतर मौजूद है।
आपे बीना आपे दाना ॥
वह स्वयं सब कुछ देखने वाला
और स्वयं ही सब कुछ जानने वाला है।
गहिर ग्मभीरु गहीरु सुजाना ॥
प्रभु अथाह गम्भीर, गहरा एवं परम बुद्धिमान है।
पारब्रहम परमेसुर गोबिंद ॥
वह पारब्रह्म, परमेश्वर एवं गोबिन्द
क्रिपा निधान दइआल बखसंद ॥
कृपा का भण्डार, बड़ा दयालु एवं क्षमाशील है।
साध तेरे की चरनी पाउ ॥
हे प्रभु ! तेरे साधुओं के चरणों पर नतमस्तक होवे
नानक कै मनि इहु अनराउ ॥१॥
नानक के मन में यही अभिलाषा है ॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
मनसा पूरन सरना जोग ॥
भगवान मनोकामना पूर्ण करने वाला एवं शरण देने योग्य है।
जो करि पाइआ सोई होगु ॥
जो कुछ ईश्वर ने अपने हाथ से लिख दिया है, वही होता है।
हरन भरन जा का नेत्र फोरु ॥
वह पलक झपकते ही सृष्टि की रचना एवं विनाश कर देता है।
तिस का मंत्रु न जानै होरु ॥
दूसरा कोई उसके भेद को नहीं जानता।
अनद रूप मंगल सद जा कै ॥
वह प्रसन्नता का रूप है एवं उसके मन्दिर में सदैव मंगल-खुशियाँ हैं।
सरब थोक सुनीअहि घरि ता कै ॥
मैंने सुना है कि समस्त पदार्थ उसके घर में मौजूद हैं।
राज महि राजु जोग महि जोगी ॥
राजाओं में वह महान राजा एवं योगीयों में महायोगी है।
तप महि तपीसरु ग्रिहसत महि भोगी ॥
तपस्वियों में वह महान तपस्वी है और गृहस्थियों में भी स्वयं ही गृहस्थी है।
धिआइ धिआइ भगतह सुखु पाइआ ॥
उस एक ईश्वर का ध्यान करने से भक्तजनों ने सुख प्राप्त कर लिया है।
नानक तिसु पुरख का किनै अंतु न पाइआ ॥२॥
हे नानक ! उस परमात्मा का किसी ने भी अन्त नहीं पाया ॥ २ ॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
जा की लीला की मिति नाहि ॥
जिस भगवान की (सृष्टि-रूपी) लीला का कोई अंत नहीं,
सगल देव हारे अवगाहि ॥
उसे खोज-खोजकर देवता भी थक चुके हैं।
पिता का जनमु कि जानै पूतु ॥
चूंकि अपने पिता के जन्म बारे पुत्र क्या जानता है ?
सगल परोई अपुनै सूति ॥
सारी सृष्टि ईश्वर ने अपने (हुक्म रूपी) धागे में पिरोई हुई है।
सुमति गिआनु धिआनु जिन देइ ॥
जिन्हें प्रभु सुमति, ज्ञान एवं ध्यान प्रदान करता है,
जन दास नामु धिआवहि सेइ ॥
उसके सेवक एवं दास उसका ही ध्यान करते रहते हैं।
तिहु गुण महि जा कउ भरमाए ॥
जिसको प्रभु माया के तीन गुणों में भटकाता है,
जनमि मरै फिरि आवै जाए ॥
वह जन्मता-मरता रहता है और आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है।
ऊच नीच तिस के असथान ॥
ऊँच-नीच सब उसके ही स्थान हैं।
जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥
हे नानक ! जैसी सूझ वह देता है,
वैसे ही सूझ वाला प्राणी बन जाता है ॥३॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
नाना रूप नाना जा के रंग ॥
ईश्वर के अनेक रूप हैं और अनेक उसके रंग हैं।
नाना भेख करहि इक रंग ॥
अनेक वेष धारण करते हुए वह फिर भी एक ही रहता है।
नाना बिधि कीनो बिसथारु ॥
उसने विभिन्न विधियों से अपनी सृष्टि का प्रसार किया हुआ है।
प्रभु अबिनासी एकंकारु ॥
अनश्वर प्रभु जो एक ही है,
नाना चलित करे खिन माहि ॥
एक क्षण में वह विभिन्न खेल रच देता है।
पूरि रहिओ पूरनु सभ ठाइ ॥
पूर्ण प्रभु समस्त स्थानों में समा रहा है।
नाना बिधि करि बनत बनाई ॥
अनेक विधियों से उसने सृष्टि-रचना की है।
अपनी कीमति आपे पाई ॥
अपना मूल्यांकन उसने स्वयं ही पाया है।
सभ घट तिस के सभ तिस के ठाउ ॥
समस्त हृदय उसके हैं और उसके ही समस्त स्थान हैं।
जपि जपि जीवै नानक हरि नाउ ॥४॥
हे नानक ! मैं हरि का नाम जप-जप कर ही जीता हूँ ॥४॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
नाम के धारे सगले जंत ॥
ईश्वर नाम ने ही समस्त जीव-जन्तुओं को सहारा दिया हुआ है।
नाम के धारे खंड ब्रहमंड ॥
धरती के खण्ड एवं ब्रह्माण्ड ईश्वर नाम ने ही टिकाए हुए हैं।
नाम के धारे सिम्रिति बेद पुरान ॥
ईश्वर के नाम ने ही स्मृतियों, वेदों एवं पुराणों को सहारा दिया हुआ है।
नाम के धारे सुनन गिआन धिआन ॥
नाम के सहारे द्वारा प्राणी ज्ञान एवं मनन बारे सुनते हैं।
नाम के धारे आगास पाताल ॥
परमेश्वर का नाम ही आकाशों एवं पातालों का सहारा है।
नाम के धारे सगल आकार ॥
ईश्वर का नाम समस्त शरीरों का सहारा है।
नाम के धारे पुरीआ सभ भवन ॥
तीनों भवन एवं चौदह लोक ईश्वर के नाम ने टिकाए हुए हैं।
नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन ॥
नाम की संगति करने एवं कानों से
इसको श्रवण करने से मनुष्य पार हो गए हैं।
करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए ॥
जिस पर प्रभु कृपा धारण करके अपने नाम के साथ मिलाता है,
नानक चउथे पद महि सो जनु गति पाए ॥५॥
हे नानक ! वह मनुष्य चतुर्थ स्थान में पहुँचकर
मोक्ष प्राप्त कर लेता है॥ ५॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
रूपु सति जा का सति असथानु ॥
जिस भगवान का रूप सत्य है, उसका निवास भी सत्य है।
पुरखु सति केवल परधानु ॥
केवल वह सद्पुरुष ही प्रधान है।
करतूति सति सति जा की बाणी ॥
उसके करतब सत्य हैं और उसकी वाणी सत्य है।
सति पुरख सभ माहि समाणी ॥
सत्यस्वरूप प्रभु सब में समाया हुआ है।
सति करमु जा की रचना सति ॥
उसके कर्म सत्य हैं और उसकी सृष्टि भी सत्य है।
मूलु सति सति उतपति ॥
उसका मूल सत्य है एवं जो कुछ उससे उत्पन्न होता है,
वह भी सत्य है।
सति करणी निरमल निरमली ॥
उसकी करनी सत्य है और पवित्र से भी पवित्र है।
जिसहि बुझाए तिसहि सभ भली ॥
भगवान जिसे समझाता है, उसे सब भला ही लगता है।
सति नामु प्रभ का सुखदाई ॥
प्रभु का सत्यनाम सुख देने वाला है।
बिस्वासु सति नानक गुर ते पाई ॥६॥
हे नानक ! (प्राणी को) यह सच्चा विश्वासगुरु से मिलता है॥ ६ ॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
सति बचन साधू उपदेस ॥
साधु का उपदेश सत्य वचन हैं।
सति ते जन जा कै रिदै प्रवेस ॥
वे पुरुष सत्य हैं, जिनके हृदय में सत्य प्रवेश करता है।
सति निरति बूझै जे कोइ ॥
यदि कोई व्यक्ति सत्य को समझे और प्रेम करे,
नामु जपत ता की गति होइ ॥
तो नाम जपने से उसकी गति हो जाती है।
आपि सति कीआ सभु सति ॥
प्रभु स्वयं सत्यस्वरूप है और उसका किया सब सत्य है।
आपे जानै अपनी मिति गति ॥
वह स्वयं ही अपने अनुमान एवं अवस्था को जानता है।
जिस की स्रिसटि सु करणैहारु ॥
जिसकी यह सृष्टि है, वही उसका सृजनहार है।
अवर न बूझि करत बीचारु ॥
कोई दूसरा उसको नहीं समझता, चाहे वह कैसे विचार करे।
करते की मिति न जानै कीआ ॥
करतार का विस्तार, उसका उत्पन्न किया हुआ जीव नहीं जान सकता।
नानक जो तिसु भावै सो वरतीआ ॥७॥
हे नानक ! जो कुछ उसे लुभाता है, केवल वही होता है। ७॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 16
बिसमन बिसम भए बिसमाद ॥
प्रभु के अद्भुत, आश्चर्यजनक कौतुक देखकर मैं चकित हो गया हूँ।
जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद ॥
जो प्रभु की महिमा को समझता है, वही आनन्द प्राप्त करता है।
प्रभ कै रंगि राचि जन रहे ॥
प्रभु के सेवक उसके प्रेम में लीन रहते हैं।
गुर कै बचनि पदारथ लहे ॥
गुरु के उपदेश द्वारा वह (नाम) पदार्थ को प्राप्त कर लेते हैं।
ओइ दाते दुख काटनहार ॥
वह दानी एवं दुःख दूर करने वाले हैं।
जा कै संगि तरै संसार ॥
उनकी संगति में संसार का कल्याण हो जाता है।
जन का सेवकु सो वडभागी ॥
ऐसे सेवकों का सेवक सौभाग्यशाली है।
जन कै संगि एक लिव लागी ॥
उसके सेवक की संगति में मनुष्य की वृति एक ईश्वर से लग जाती है।
गुन गोबिद कीरतनु जनु गावै ॥
प्रभु का सेवक उसकी गुणस्तुति एवं भजन गायन करता है।
गुर प्रसादि नानक फलु पावै ॥८॥१६॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से वह फल प्राप्त कर लेता है॥ ८॥ १६॥