Sukhmani Sahib Ashtpadi 11 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11 Hindi Lyrics,and Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

सुखमनी साहिब असटपदी 11

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

सलोकु ॥

करण कारण प्रभु एकु है दूसर नाही कोइ ॥
एक ईश्वर ही सृष्टि का मूल कारण (सर्जक) है,
उसके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं।

नानक तिसु बलिहारणै जलि थलि महीअलि सोइ ॥१॥
हे नानक ! मैं उस ईश्वर पर कुर्बान जाता हूँ,
जो जल, धरती, पाताल एवं आकाश में विद्यमान है॥ १॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

असटपदी ॥
अष्टपदी।

करन करावन करनै जोगु ॥
हर कार्य करने और जीवों से कराने वाला एक ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है।

जो तिसु भावै सोई होगु ॥
जो कुछ उसे भला लगता है, वही होता है।

खिन महि थापि उथापनहारा ॥
वह क्षण भर में इस सृष्टि को उत्पन्न करने एवं नाश भी करने वाला (प्रभु) है।

अंतु नही किछु पारावारा ॥
उसकी ताकत का कोई ओर-छोर नहीं।

हुकमे धारि अधर रहावै ॥
अपने हुक्म द्वारा उसने धरती की स्थापना की है
और बिना किसी सहारे के उसने (टिकाया) रखा हुआ है।

हुकमे उपजै हुकमि समावै ॥
जो कुछ उसके हुक्म द्वारा उत्पन्न हुआ है,
अन्त में उसके हुक्म में लीन हो जाता है।

हुकमे ऊच नीच बिउहार ॥
भले तथा बुरे कर्म उसकी इच्छा (रज़ा) अनुसार हैं।

हुकमे अनिक रंग परकार ॥
उसके हुक्म द्वारा अनेकों प्रकार के खेल-तमाशे हो रहे हैं।

करि करि देखै अपनी वडिआई ॥
सृष्टि-रचना करके वह अपनी महिमा को देखता रहता है।

नानक सभ महि रहिआ समाई ॥१॥
हे नानक ! ईश्वर समस्त जीवों में समा रहा है॥ १॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

प्रभ भावै मानुख गति पावै ॥
यदि प्रभु को भला लगे तो मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

प्रभ भावै ता पाथर तरावै ॥
यदि प्रभु को भला लगे तो पत्थर को भी पार कर देता है।

प्रभ भावै बिनु सास ते राखै ॥
यदि प्रभु को भला लगे तो श्वासों के बिना भी प्राणी को (मृत्यु से) बचाकर रखता है।

प्रभ भावै ता हरि गुण भाखै ॥
यदि प्रभु को भला लगे तो मनुष्य ईश्वर की गुणस्तुति करता रहता है।

प्रभ भावै ता पतित उधारै ॥
यदि प्रभु को भला लगे तो वह पापियों का भी उद्धार कर देता है।

आपि करै आपन बीचारै ॥
ईश्वर स्वयं ही सब कुछ करता है और स्वयं ही विचार करता है।

दुहा सिरिआ का आपि सुआमी ॥
ईश्वर स्वयं ही लोक-परलोक का स्वामी है।

खेलै बिगसै अंतरजामी ॥
अंतर्यामी प्रभु जगत्-खेल खेलता रहता है और (इसे देखकर) खुश होता है।

जो भावै सो कार करावै ॥
जो कुछ प्रभु को लुभाता है, वही काम मनुष्य से करवाता है।

नानक द्रिसटी अवरु न आवै ॥२॥
हे नानक ! उस जैसा दूसरा कोई नजर नहीं आता ॥ २ ॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

कहु मानुख ते किआ होइ आवै ॥
बताओ, मनुष्य से कौन-सा काम हो सकता है?

जो तिसु भावै सोई करावै ॥
जो ईश्वर को भला लगता है, वही (काम) प्राणी से करवाता है।

इस कै हाथि होइ ता सभु किछु लेइ ॥
यदि मनुष्य के वश में हो तो वह हरेक पदार्थ सँभाल ले।

जो तिसु भावै सोई करेइ ॥
जो कुछ परमात्मा को उपयुक्त लगता है, वह वही कुछ करता है।

अनजानत बिखिआ महि रचै ॥
ज्ञान न होने के कारण मनुष्य विषय-विकारों में मग्न रहता है।

जे जानत आपन आप बचै ॥
यदि वह जानता हो तो वह अपने आपको (विकारों से) बचा ले।

भरमे भूला दह दिसि धावै ॥
भ्रम में भूला हुआ उसका मन दसों दिशाओं में भटकता रहता है।

निमख माहि चारि कुंट फिरि आवै ॥
चारों कोनों में चक्कर काट कर वह एक क्षण में वापिस लौट आता है।

करि किरपा जिसु अपनी भगति देइ ॥
जिसे कृपा करके प्रभु अपनी भक्ति प्रदान करता है।

नानक ते जन नामि मिलेइ ॥३॥
हे नानक ! वह पुरुष नाम में लीन हो जाता है॥३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

खिन महि नीच कीट कउ राज ॥
क्षण में ही ईश्वर कीड़े समान निम्न (पुरुष) को (राज्य प्रदान करके) राजा बना देता है।

पारब्रहम गरीब निवाज ॥
भगवान गरीबों पर दया करने वाला है।

जा का द्रिसटि कछू न आवै ॥
जिस प्राणी का कोई गुण दिखाई नहीं देता,

तिसु ततकाल दह दिस प्रगटावै ॥
उसे क्षण भर में तुरन्त ही दसों दिशाओं में लोकप्रिय कर देता है।

जा कउ अपुनी करै बखसीस ॥
विश्व का स्वामी जगदीश जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि कर देता है,

ता का लेखा न गनै जगदीस ॥
वह उसके कर्मों का लेखा-जोखा नहीं गिनता।

जीउ पिंडु सभ तिस की रासि ॥
यह आत्मा एवं शरीर सब उसकी दी हुई पूंजी है।

घटि घटि पूरन ब्रहम प्रगास ॥
पूर्ण ब्रह्म का प्रत्येक हृदय में प्रकाश है।

अपनी बणत आपि बनाई ॥
यह सृष्टि-रचना उसने स्वयं ही रची है।

नानक जीवै देखि बडाई ॥४॥
हे नानक ! मैं उसकी महिमा को देखकर जी रहा हूँ ॥४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

इस का बलु नाही इसु हाथ ॥
इस जीव का बल इसके अपने हाथ में नहीं है क्योंकि

करन करावन सरब को नाथ ॥
सबका मालिक एक परमात्मा ही सब कुछ करने एवं जीव से कराने वाला है,

आगिआकारी बपुरा जीउ ॥
बेचारा जीव तो परमात्मा का आज्ञाकारी है।

जो तिसु भावै सोई फुनि थीउ ॥
जो कुछ ईश्वर को भला लगता है, अंतः वही होता है।

कबहू ऊच नीच महि बसै ॥
मनुष्य कभी उच्च जातियों एवं कभी निम्न जातियों में बसता है।

कबहू सोग हरख रंगि हसै ॥
कभी वह दुःख में दुखी होता है और कभी खुशी में प्रसन्नता से हंसता है।

कबहू निंद चिंद बिउहार ॥
कभी निन्दा करना ही उसका व्यवसाय होता है।

कबहू ऊभ अकास पइआल ॥
कभी वह आकाश में होता है और कभी पाताल में।

कबहू बेता ब्रहम बीचार ॥
कभी वह ब्रह्म विचार का ज्ञाता होता है।

नानक आपि मिलावणहार ॥५॥
हे नानक ! ईश्वर मनुष्य को अपने साथ मिलाने वाला स्वयं ही है॥५॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

कबहू निरति करै बहु भाति ॥
यह जीव कभी अनेक प्रकार के नृत्य कर रहा है।

कबहू सोइ रहै दिनु राति ॥
कभी वह दिन-रात सोया रहता है।

कबहू महा क्रोध बिकराल ॥
कभी वह अपने महाक्रोध में भयानक हो जाता है।

कबहूं सरब की होत रवाल ॥
कभी वह सब की चरण-धूलि बना रहता है।

कबहू होइ बहै बड राजा ॥
कभी वह महान राजा बन बैठता है।

कबहु भेखारी नीच का साजा ॥
कभी वह नीच भिखारी का वेष धारण कर लेता है।

कबहू अपकीरति महि आवै ॥
कभी वह अपकीर्ति (बदनामी) में आ जाता है।

कबहू भला भला कहावै ॥
कभी वह बहुत भला कहलवाता है।

जिउ प्रभु राखै तिव ही रहै ॥
जिस तरह प्रभु उसको रखता है, वैसे ही जीव रहता है।

गुर प्रसादि नानक सचु कहै ॥६॥
गुरु की कृपा से नानक सत्य ही कहता है॥ ६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

कबहू होइ पंडितु करे बख्यानु ॥
कभी मनुष्य पण्डित बनकर उपदेश देता है।

कबहू मोनिधारी लावै धिआनु ॥
कभी वह मौनधारी साधु बनकर ध्यान लगाए बैठा है।

कबहू तट तीरथ इसनान ॥
कभी वह तीर्थों के किनारे जाकर स्नान करता है।

कबहू सिध साधिक मुखि गिआन ॥
कभी वह सिद्ध, साधक बनकर मुख से ज्ञान करता है।

कबहू कीट हसति पतंग होइ जीआ ॥
कभी मनुष्य कीड़ा, हाथी अथवा पतंगा बना रहता है

अनिक जोनि भरमै भरमीआ ॥
और अनेक योनियों में लगातार भटकता रहता है।

नाना रूप जिउ स्वागी दिखावै ॥
बहुरूपिए की भाँति वह अत्याधिक रूप धारण करता हुआ भी दिखाई देता है।

जिउ प्रभ भावै तिवै नचावै ॥
जिस तरह प्रभु को उपयुक्त लगता है, वैसे ही नचाता है

जो तिसु भावै सोई होइ ॥
जैसे उसको अच्छा लगता है, वही होता है।

नानक दूजा अवरु न कोइ ॥७॥
हे नानक ! उसके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं ॥ ७॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11

कबहू साधसंगति इहु पावै ॥
यह जीव कभी सत्संगति को पाता है तो

उसु असथान ते बहुरि न आवै ॥
उस (पवित्र) स्थान से दोबारा वह लौटकर नहीं आता।

अंतरि होइ गिआन परगासु ॥
उसके हृदय में ज्ञान का प्रकाश होता है।

उसु असथान का नही बिनासु ॥
उस निवास का कभी विनाश नहीं होता।

मन तन नामि रते इक रंगि ॥
जिसका मन एवं तन ईश्वर के नाम एवं प्रेम में मग्न रहता हैं।

सदा बसहि पारब्रहम कै संगि ॥
यह हमेशा ही परमात्मा के संग बसता है।

जिउ जल महि जलु आइ खटाना ॥
जैसे जल आकर जल में ही मिल जाता है,

तिउ जोती संगि जोति समाना ॥
वैसे ही उसकी ज्योति परम ज्योति में लीन हो जाती है।

मिटि गए गवन पाए बिस्राम ॥
उसका आवागमन (जन्म-मरण) मिट जाता है और वह सुख पा लेता है।

नानक प्रभ कै सद कुरबान ॥८॥११॥
हे नानक ! ऐसे प्रभु पर मैं सदैव कुर्बान जाता हूँ ॥८॥ ११॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 11