Sukhmani Sahib Ashtpadi 10 Hindi Lyrics & Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10 Hindi Lyrics, and Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
सुखमनी साहिब असटपदी 10
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
सलोकु ॥
उसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार ॥
बहुत सारे मनुष्य प्रभु की गुणस्तुति करते रहते हैं,
परन्तु परमात्मा के गुणों का कोई ओर-छोर नहीं मिलता।
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥
हे नानक ! परमात्मा ने जो यह सृष्टि-रचना की है,
वह अनेक प्रकार की होने के कारण बहुत सारी विधियों से रची है॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
असटपदी ॥
अष्टपदी ॥
कई कोटि होए पूजारी ॥
कई करोड़ जीव उसकी पूजा करने वाले हुए हैं।
कई कोटि आचार बिउहारी ॥
कई करोड़ धार्मिक एवं सांसारिक आचरण-व्यवहार करने वाले हुए हैं।
कई कोटि भए तीरथ वासी ॥
कई करोड़ जीव तीर्थो के निवासी हुए हैं।
कई कोटि बन भ्रमहि उदासी ॥
कई करोड़ जीव वैरागी बनकर जंगलों में भटकते रहते हैं।
कई कोटि बेद के स्रोते ॥
कई करोड़ वेदों के श्रोता हैं।
कई कोटि तपीसुर होते ॥
कई करोड़ तपस्वी बने हुए हैं।
कई कोटि आतम धिआनु धारहि ॥
कई करोड़ अपनी आत्मा में प्रभु-ध्यान को धारण करने वाले हैं।
कई कोटि कबि काबि बीचारहि ॥
कई करोड़ कवि काव्य-रचनाओं द्वारा विचार करते हैं।
कई कोटि नवतन नाम धिआवहि ॥
कई करोड़ पुरुष नित्य नवीन नाम का ध्यान करते रहते हैं,
नानक करते का अंतु न पावहि ॥१॥
तो भी हे नानक ! उस परमात्मा का कोई भेद नहीं पा सकते ॥१॥
कई कोटि भए अभिमानी ॥
इस दुनिया में कई करोड़ (पुरुष) अभिमानी हैं।
कई कोटि अंध अगिआनी ॥
कई करोड़ (पुरुष) अन्धे अज्ञानी हैं।
कई कोटि किरपन कठोर ॥
कई करोड़ (पुरुष) पत्थर दिल व् कंजूस हैं।
कई कोटि अभिग आतम निकोर ॥
कई करोड़ (मनुष्य) शुष्क एवं संवेदनहीन हैं।
कई कोटि पर दरब कउ हिरहि ॥
कई करोड़ (मनुष्य) दूसरों का धन चुराते हैं।
कई कोटि पर दूखना करहि ॥
कई करोड़ (मनुष्य) दूसरों की निन्दा करते हैं।
कई कोटि माइआ स्रम माहि ॥
कई करोड़ (पुरुष) धन संग्रह करने हेतु श्रम में लगे हैं।
कई कोटि परदेस भ्रमाहि ॥
कई करोड़ दूसरे देशों में भटक रहे हैं।
जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ॥
हे प्रभु ! जहाँ कहीं तुम जीवों को (काम में) लगाते हो, वहाँ-वहाँ वे लग जाते हैं।
नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥
हे नानक ! कर्ता-प्रभु की सृष्टि रचना (का भेद) कर्ता-प्रभु ही जानता है ॥२॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
कई कोटि सिध जती जोगी ॥
दुनिया में कई करोड़ सिद्ध, ब्रह्मचारी एवं योगी हैं।
कई कोटि राजे रस भोगी ॥
कई करोड़ रस भोगने वाले राजा हैं।
कई कोटि पंखी सरप उपाए ॥
कई करोड़ पक्षी एवं साँप परमात्मा ने पैदा किए हैं,
कई कोटि पाथर बिरख निपजाए ॥
कई करोड़ पत्थर एवं वृक्ष उगाए गए हैं।
कई कोटि पवण पाणी बैसंतर ॥
कई करोड़ हवाएँ, जल एवं अग्नियां हैं।
कई कोटि देस भू मंडल ॥
कई करोड़ देश एवं भूमण्डल हैं।
कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र ॥
कई करोड़ चन्द्रमा, सूर्य एवं तारे हैं।
कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र ॥
कई करोड़ देवते, राक्षस एवं इन्द्र हैं,
जिनके सिर पर छत्र हैं।
सगल समग्री अपनै सूति धारै ॥
ईश्वर ने सारी सृष्टि को अपने (हुक्म के) धागे में पिरोया हुआ है।
नानक जिसु जिसु भावै तिसु तिसु निसतारै ॥३॥
हे नानक ! जो जो परमात्मा को भला लगता है,
उसे ही वह भवसागर से पार कर देता है ॥३॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
कई कोटि राजस तामस सातक ॥
कई करोड़ रजोगुणी, तमोगुणी एवं सतोगुणी जीव हैं।
कई कोटि बेद पुरान सिम्रिति अरु सासत ॥
कई करोड़ वेद, पुराण, स्मृतियां एवं शास्त्र हैं।
कई कोटि कीए रतन समुद ॥
कई करोड़ समुद्रो में रत्न पैदा कर दिए हैं।
कई कोटि नाना प्रकार जंत ॥
कई करोड़ विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु हैं।
कई कोटि कीए चिर जीवे ॥
करोड़ों प्राणी लम्बी आयु वाले बनाए गए हैं।
कई कोटि गिरी मेर सुवरन थीवे ॥
(परमात्मा के हुक्म द्वारा)
कई करोड़ ही सोने के सुमेर पर्वत बन गए हैं।
कई कोटि जख्य किंनर पिसाच ॥
कई करोड़ यक्ष, किन्नर एवं पिशाच हैं।
कई कोटि भूत प्रेत सूकर म्रिगाच ॥
कई करोड़ ही भूत-प्रेत, सूअर एवं शेर हैं।
सभ ते नेरै सभहू ते दूरि ॥
ईश्वर सबके निकट और सबके ही दूर है।
नानक आपि अलिपतु रहिआ भरपूरि ॥४॥
हे नानक ! ईश्वर हरेक में परिपूर्ण हो रहा है,
जबकि वह स्वयं निर्लिप्त रहता है ॥४॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
कई कोटि पाताल के वासी ॥
कई करोड़ जीव पाताल के निवासी हैं।
कई कोटि नरक सुरग निवासी ॥
कई करोड़ जीव नरकों तथा स्वर्गों में रहते हैं।
कई कोटि जनमहि जीवहि मरहि ॥
कई करोड़ जीव जन्मते, जीते और मरते हैं।
कई कोटि बहु जोनी फिरहि ॥
कई करोड़ जीव अनेक योनियों में भटक रहे हैं।
कई कोटि बैठत ही खाहि ॥
कई करोड़ (व्यर्थ) बैठकर खाते हैं।
कई कोटि घालहि थकि पाहि ॥
करोड़ों ही जीव परिश्रम से थककर टूट जाते हैं।
कई कोटि कीए धनवंत ॥
कई करोड़ जीव धनवान बनाए गए हैं।
कई कोटि माइआ महि चिंत ॥
करोड़ों ही जीव धन-दौलत की चिन्ता में लीन हैं।
जह जह भाणा तह तह राखे ॥
ईश्वर जहाँ कहीं चाहता है, वहाँ ही वह जीवों को रखता है।
नानक सभु किछु प्रभ कै हाथे ॥५॥
हे नानक ! सब कुछ ईश्वर के अपने हाथ में है ॥५॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
कई कोटि भए बैरागी ॥
इस दुनिया में कई करोड़ जीव वैराग्यवान बने हुए हैं
राम नाम संगि तिनि लिव लागी ॥
और राम के नाम से उनकी वृत्ति लगी हुई है।
कई कोटि प्रभ कउ खोजंते ॥
करोड़ों ही जीव परमात्मा को खोजते रहते हैं
आतम महि पारब्रहमु लहंते ॥
और अपनी आत्मा में ही भगवान को पा लेते हैं।
कई कोटि दरसन प्रभ पिआस ॥
करोड़ों ही प्राणियों को ईश्वर के दर्शनों की प्यास (अभिलाषा) लगी रहती है,
तिन कउ मिलिओ प्रभु अबिनास ॥
उन्हें अनश्वर प्रभु मिल जाता है।
कई कोटि मागहि सतसंगु ॥
कई करोड़ प्राणी सत्संगति की माँग करते हैं।
पारब्रहम तिन लागा रंगु ॥
वे भगवान के प्रेम में ही मग्न रहते हैं।
जिन कउ होए आपि सुप्रसंन ॥
हे नानक ! जिन पर ईश्वर स्वयं सुप्रसन्न होता है,
नानक ते जन सदा धनि धंनि ॥६॥
ऐसे व्यक्ति हमेशा ही भाग्यवान हैं।॥६॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
कई कोटि खाणी अरु खंड ॥
धरती के नौ खण्डों एवं (चार) दिशाओं में करोड़ों ही प्राणी पैदा हुए हैं।
कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥
कई करोड़ आकाश एवं ब्रह्माण्ड हैं।
कई कोटि होए अवतार ॥
करोड़ों ही अवतार हो चुके हैं।
कई जुगति कीनो बिसथार ॥
कई युक्तियों से ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है।
कई बार पसरिओ पासार ॥
इस सृष्टि का कई बार प्रसार हुआ है
सदा सदा इकु एकंकार ॥
लेकिन परमात्मा हमेशा से एक ही है।
कई कोटि कीने बहु भाति ॥
कई करोड़ जीव ईश्वर ने अनेक विधियों के बनाए हैं।
प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति ॥
परमेश्वर से वे (जीव) उत्पन्न हुए हैं और परमेश्वर में ही समा गए हैं।
ता का अंतु न जानै कोइ ॥
उसके अन्त को कोई नहीं जानता।
आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥७॥
हे नानक ! वह परमेश्वर सब कुछ आप ही है ॥ ७॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 10
कई कोटि पारब्रहम के दास ॥
इस दुनिया में कई करोड़ जीव परमात्मा के दास हैं
तिन होवत आतम परगास ॥
और उनकी आत्मा में प्रकाश हो जाता है।
कई कोटि तत के बेते ॥
कई करोड़ जीव तत्त्वज्ञाता हैं,
सदा निहारहि एको नेत्रे ॥
और अपने नेत्रों से वे सदैव एक ईश्वर के दर्शन करते रहते हैं।
कई कोटि नाम रसु पीवहि ॥
कई करोड़ जीव नाम-रस पीते रहते हैं,
अमर भए सद सद ही जीवहि ॥
जो अमर होकर हमेशा ही जीते हैं।
कई कोटि नाम गुन गावहि ॥
करोड़ों ही जीव नाम का यशोगान करते रहते हैं।
आतम रसि सुखि सहजि समावहि ॥
वे आत्म-रस के सुख में सहज ही समा जाते हैं।
अपुने जन कउ सासि सासि समारे ॥
अपने भक्तों की प्रभु श्वास-श्वास से देखभाल करता है।
नानक ओइ परमेसुर के पिआरे ॥८॥१०॥
हे नानक ! ऐसे भक्त ही परमेश्वर के प्रिय होते हैं ॥८॥१०॥