Sukhmani Sahib Ashtpadi 20 Hindi Lyrics & Meaning
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20 Hindi Lyrics, and Meaning.
सुखमनी साहिब असटपदी 20
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
सलोकु ॥
फिरत फिरत प्रभ आइआ परिआ तउ सरनाइ ॥
हे पूज्य प्रभु ! मैं भटक-भटक कर तेरी ही शरण में आया हूँ।
नानक की प्रभ बेनती अपनी भगती लाइ ॥१॥
हे प्रभु ! नानक एक यही विनती करता है कि मुझे अपनी भक्ति में लगा ले ॥१॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
असटपदी ॥
अष्टपदी ॥
जाचक जनु जाचै प्रभ दानु ॥
हे प्रभु ! मैं भिखारी तेरे नाम का दान माँगता हूँ।
करि किरपा देवहु हरि नामु ॥
हे हरि ! कृपा करके मुझे अपना नाम प्रदान कीजिए।
साध जना की मागउ धूरि ॥
मैं तो साधुओं के चरणों की धूली ही मांगता हूँ।
पारब्रहम मेरी सरधा पूरि ॥
हे पारब्रह्म ! मेरी श्रद्धा पूर्ण कीजिए।
सदा सदा प्रभ के गुन गावउ ॥
मैं हमेशा ही प्रभु का गुणानुवाद करता रहूँ।
सासि सासि प्रभ तुमहि धिआवउ ॥
हे प्रभु ! प्रत्येक श्वास से मैं तेरी ही आराधना करूँ।
चरन कमल सिउ लागै प्रीति ॥
प्रभु के चरणों से मेरा प्रेम पड़ा हुआ है।
भगति करउ प्रभ की नित नीति ॥
मैं हमेशा ही प्रभु की भक्ति करता रहूँ।
एक ओट एको आधारु ॥
हे भगवान ! तुम ही मेरी एक ओट तथा एक सहारा हो।
नानकु मागै नामु प्रभ सारु ॥१॥
हे मेरे प्रभु ! नानक तेरे सर्वोत्तम नाम की याचना करता है॥ १॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
प्रभ की द्रिसटि महा सुखु होइ ॥
प्रभु की करुणा-दृष्टि से परम सुख उपलब्ध होता है।
हरि रसु पावै बिरला कोइ ॥
कोई विरला पुरुष ही हरि-रस को पाता है।
जिन चाखिआ से जन त्रिपताने ॥
जो इसे चखते हैं, वे जीव तृप्त हो जाते हैं।
पूरन पुरख नही डोलाने ॥
वे पूर्ण पुरुष बन जाते हैं और कभी (माया में) डगमगाते नहीं।
सुभर भरे प्रेम रस रंगि ॥
वह प्रभु के प्रेम की मिठास एवं आनंद से पूर्णता भरे रहते हैं।
उपजै चाउ साध कै संगि ॥
साधुओं की संगति में उनके मन में आत्मिक चाव उत्पन्न हो जाता है।
परे सरनि आन सभ तिआगि ॥
अन्य सब कुछ त्याग कर वह प्रभु की शरण लेते हैं।
अंतरि प्रगास अनदिनु लिव लागि ॥
उनका हृदय उज्ज्वल हो जाता है और दिन-रात वह अपनी वृती ईश्वर में लगाते हैं।
बडभागी जपिआ प्रभु सोइ ॥
भाग्यशाली पुरुषों ने ही प्रभु का जाप किया है।
नानक नामि रते सुखु होइ ॥२॥
हे नानक ! जो पुरुष प्रभु के नाम में मग्न रहते हैं, वे सुख पाते हैं। ॥२॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
सेवक की मनसा पूरी भई ॥
सेवक की मनोकामना पूर्ण हो गई है,
सतिगुर ते निरमल मति लई ॥
जबसे सतिगुरु से निर्मल उपदेश लिया है ।
जन कउ प्रभु होइओ दइआलु ॥
अपने सेवक पर प्रभु कृपालु हो गया है।
सेवकु कीनो सदा निहालु ॥
अपने सेवक को हमेशा के लिए उसने कृतार्थ कर दिया है।
बंधन काटि मुकति जनु भइआ ॥
सेवक के (माया के) बन्धन कट गए हैं और उसने मोक्ष प्राप्त कर लिया है।
जनम मरन दूखु भ्रमु गइआ ॥
उसका जन्म-मरण, दुःख एवं दुविधा दूर हो गए हैं।
इछ पुनी सरधा सभ पूरी ॥
उसकी इच्छा पूर्ण हो गई है और श्रद्धा भी पूरी हो गई है।
रवि रहिआ सद संगि हजूरी ॥
भगवान हमेशा साथ बस रहा है।
जिस का सा तिनि लीआ मिलाइ ॥
जिसका था, उसने अपने साथ मिला लिया है।
नानक भगती नामि समाइ ॥३॥
हे नानक ! प्रभु की भक्ति से सेवक नाम में लीन हो गया है। ॥३॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
सो किउ बिसरै जि घाल न भानै ॥
उस भगवान को क्यों भुलाएँ, जो इन्सान की सेवा-भक्ति की उपेक्षा नहीं करता।
सो किउ बिसरै जि कीआ जानै ॥
उस भगवान को क्यों भुलाएँ, जो किए को जानता है।
सो किउ बिसरै जिनि सभु किछु दीआ ॥
वह ईश्वर क्यों विस्मृत हो, जिसने हमें सब कुछ दिया है।
सो किउ बिसरै जि जीवन जीआ ॥
यह परमात्मा क्यों विस्मृत हो, जो जीवों के जीवन का आधार है।
सो किउ बिसरै जि अगनि महि राखै ॥
उस अकालपुरुष को क्यों भुलाएँ, जो गर्भ की अग्नि में हमारी रक्षा करता है।
गुर प्रसादि को बिरला लाखै ॥
गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही इसको देखता है।
सो किउ बिसरै जि बिखु ते काढै ॥
उस ईश्वर को क्यों भुलाएँ, जो मनुष्य को पाप से बचाता है
जनम जनम का टूटा गाढै ॥
और स्वयं से जन्म-जन्मांतरों से बिछुड़े हुए को अपने साथ मिला लेता है ?
गुरि पूरै ततु इहै बुझाइआ ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे यह वास्तविकता समझाई है।
प्रभु अपना नानक जन धिआइआ ॥४॥
हे नानक ! उसने तो अपने प्रभु का ही ध्यान किया है ॥४॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
साजन संत करहु इहु कामु ॥
हे सज्जन, संतजनों ! यह कार्य करो।
आन तिआगि जपहु हरि नामु ॥
अन्य सब कुछ छोड़कर भगवान के नाम का जाप करो।
सिमरि सिमरि सिमरि सुख पावहु ॥
भगवान के नाम का सिमरन करके सुख पाओ।
आपि जपहु अवरह नामु जपावहु ॥
आप भी नाम का जाप करो और दूसरों से भी नाम का जाप करवाओ।
भगति भाइ तरीऐ संसारु ॥
प्रभु की भक्ति द्वारा यह संसार सागर पार किया जाता है।
बिनु भगती तनु होसी छारु ॥
भक्ति के बिना यह शरीर भस्म हो जाएगा।
सरब कलिआण सूख निधि नामु ॥
प्रभु का नाम सर्व कल्याण एवं सुखों का खजाना है,
बूडत जात पाए बिस्रामु ॥
डूबता हुआ जीव भी इसमें सुख पा लेता है।
सगल दूख का होवत नासु ॥
समस्त दुखों का नाश हो जाता है।
नानक नामु जपहु गुनतासु ॥५॥
हे नानक ! गुणों के भण्डार के नाम का जाप करते रहो ॥ ५॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
उपजी प्रीति प्रेम रसु चाउ ॥
भगवान की प्रीति व प्रेम रस का चाव उत्पन्न हुआ है।
मन तन अंतरि इही सुआउ ॥
मन-तन के भीतर यही स्वाद भर गया है।
नेत्रहु पेखि दरसु सुखु होइ ॥
अपने नेत्रों से प्रभु के दर्शन करके मैं सुख पाता हूँ।
मनु बिगसै साध चरन धोइ ॥
संतों के चरण धोकर मेरा मन प्रसन्न हो गया है।
भगत जना कै मनि तनि रंगु ॥
भक्तजनों की आत्मा एवं शरीर में प्रभु की प्रीति विद्यमान है।
बिरला कोऊ पावै संगु ॥
कोई विरला पुरुष ही उनकी संगति प्राप्त करता है।
एक बसतु दीजै करि मइआ ॥
हे ईश्वर ! दया करके हमें एक नाम-वस्तु प्रदान कीजिए (ताकि)
गुर प्रसादि नामु जपि लइआ ॥
गुरु की दया से तेरा नाम जप सकें।
ता की उपमा कही न जाइ ॥
उसकी उपमा वर्णन नहीं की जा सकती
नानक रहिआ सरब समाइ ॥६॥
हे नानक ! ईश्वर तो सर्वव्यापक है ॥ ६॥
Sukhmani Sahib Ashtpadi 20
प्रभ बखसंद दीन दइआल ॥
परमात्मा क्षमाशील एवं दीनदयालु है।
भगति वछल सदा किरपाल ॥
वह भक्तवत्सल एवं सदैव कृपालु है।
अनाथ नाथ गोबिंद गुपाल ॥
वह गोविन्द, गोपाल अनाथों का नाथ है।
सरब घटा करत प्रतिपाल ॥
वह समस्त जीव-जन्तुओं का पोषण करता है।
आदि पुरख कारण करतार ॥
वह आदिपुरुष एवं सृष्टि का रचयिता है।
भगत जना के प्रान अधार ॥
वह भक्तजनों के प्राणों का आधार है।
जो जो जपै सु होइ पुनीत ॥
जो कोई भी उसका जाप करता है, वह पवित्र-पावन हो जाता है।
भगति भाइ लावै मन हीत ॥
वह अपने मन का प्रेम ईश्वर की भक्ति पर केंद्रित करता है।
हम निरगुनीआर नीच अजान ॥
हम गुणविहीन, नीच व मूर्ख है,”
नानक तुमरी सरनि पुरख भगवान ॥७॥
नानक का कथन है कि हे सर्वशक्तिमान भगवान ! तुम्हारी शरण में आए हैं।॥ ७॥
सरब बैकुंठ मुकति मोख पाए ॥
उसने तमाम स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त कर लिए हैं,”
एक निमख हरि के गुन गाए ॥
जिस जीव ने एक क्षण भर के लिए भी भगवान की महिमा-स्तुति की है।
अनिक राज भोग बडिआई ॥
वह अनेक राज्य, भोग-पदार्थ एवं उपलब्धियां प्राप्त करता है
हरि के नाम की कथा मनि भाई ॥
जिसके मन को हरि के नाम की कथा भली लगती है।
बहु भोजन कापर संगीत ॥
वह अनेक प्रकार के भोजन, वस्त्र एवं संगीत का आनंद प्राप्त करता है
रसना जपती हरि हरि नीत ॥
जिसकी रसना सदैव हरि-परमेश्वर के नाम का जाप करती रहती है।
भली सु करनी सोभा धनवंत ॥
उसके कर्म शुभ हैं, उसी को शोभा मिलती है और वही धनवान है
हिरदै बसे पूरन गुर मंत ॥
जिसके हृदय में पूर्ण गुरु का मंत्र बसता है।
साधसंगि प्रभ देहु निवास ॥
हे ईश्वर ! अपने संतों की संगति में स्थान दीजिए।
सरब सूख नानक परगास ॥८॥२०॥
हे नानक ! सत्संगति में रहने से सर्व सुखों का आलोक हो जाता है ॥८॥२०॥