Sukhmani Sahib Ashtpadi 24 Hindi Lyrics & Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24 Hindi Lyrics, and Meaning

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24 Hindi Lyrics & Meaning

सुखमनी साहिब असटपदी 24

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

सलोकु ॥

पूरा प्रभु आराधिआ पूरा जा का नाउ ॥
उस पूर्ण नाम वाले पूर्ण प्रभु की आराधना की है।

नानक पूरा पाइआ पूरे के गुन गाउ ॥१॥
हे नानक! मैंने पूर्ण प्रभु को पा लिया है, तुम भी पूर्णं प्रभु की महिमा गाओ ॥ १॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

असटपदी ॥
अष्टपदी ॥

पूरे गुर का सुनि उपदेसु ॥
पूर्ण गुरु का उपदेश सुनो और.

पारब्रहमु निकटि करि पेखु ॥
पारब्रह्म को निकट समझ कर देखो।

सासि सासि सिमरहु गोबिंद ॥
अपनी प्रत्येक सांस से गोविन्द का सिमरन करो,

मन अंतर की उतरै चिंद ॥
इससे तेरे मन के भीतर की चिन्ता मिट जाएगी।

आस अनित तिआगहु तरंग ॥
तृष्णाओं की तरंगों को त्याग कर.

संत जना की धूरि मन मंग ॥
संतजनों की चरण धूलि की मन से याचना करो।

आपु छोडि बेनती करहु ॥
अपना अहंकार त्याग कर प्रार्थना करो।

साधसंगि अगनि सागरु तरहु ॥
सत्संगति में रहकर (विकारों की) अग्नि के सागर से पार हो जाओ।

हरि धन के भरि लेहु भंडार ॥
परमेश्वर के नाम-धन से अपने खजाने भरपूर कर ले

नानक गुर पूरे नमसकार ॥१॥
हे नानक ! पूर्ण गुरु को प्रणाम करो ॥१॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

खेम कुसल सहज आनंद ॥
तुझे मुक्ति, प्रसन्नता एवं सहज आनंद प्राप्त होंगे

साधसंगि भजु परमानंद ॥
संतों की संगति में परमानंद प्रभु का भजन करो।

नरक निवारि उधारहु जीउ ॥
इससे नरक में जाने से बच जाओगे और आत्मा पार हो जाएगी

गुन गोबिंद अम्रित रसु पीउ ॥
गोबिन्द की गुणस्तुति करके नाम-अमृत का रसपान करो।

चिति चितवहु नाराइण एक ॥
अपने मन में एक नारायण का ध्यान करो,

एक रूप जा के रंग अनेक ॥
जिसका रूप एक एवं रंग अनेक हैं।

गोपाल दामोदर दीन दइआल ॥
वह गोपाल, दामोदर, दीनदयालु,

दुख भंजन पूरन किरपाल ॥
दुःखनाशक एवं पूर्ण कृपालु है।

सिमरि सिमरि नामु बारं बार ॥
हे नानक ! बार-बार उसके नाम का सिमरन करते रहो चूंकि

नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥
जीव का एकमात्र यही सहारा है॥ २ ॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

उतम सलोक साध के बचन ॥
साधु के वचन उत्तम श्लोक हैं।

अमुलीक लाल एहि रतन ॥
यही अमूल्य रत्न एवं जवाहर है।

सुनत कमावत होत उधार ॥
जो व्यक्ति इन वचनों को सुनता और पालन करता है,
उसका भवसागर से उद्धार हो जाता है।

आपि तरै लोकह निसतार ॥
वह स्वयं भवसागर से पार हो जाता है
और दूसरे लोगों का भी कल्याण कर देता है।

सफल जीवनु सफलु ता का संगु ॥
उसका जीवन सफल हो जाता है
और उसकी संगति दूसरों की कामनाएँ पूर्ण करती हैं,

जा कै मनि लागा हरि रंगु ॥
जिसके हृदय में ईश्वर का प्रेम बन जाता है।

जै जै सबदु अनाहदु वाजै ॥
उसकी जय, जय है, जिसके लिए अनहद ध्वनि होती है।

सुनि सुनि अनद करे प्रभु गाजै ॥
जिसे सुनकर वह हर्षित होता है और प्रभु की महिमा की मुनादी करता है।

प्रगटे गुपाल महांत कै माथे ॥
ऐसे महापुरुषों के मस्तक पर परमात्मा प्रगट होता है।

नानक उधरे तिन कै साथे ॥३॥
हे नानक ! ऐसे महापुरुष की संगति करने से
बहुत सारे लोगों का उद्धार हो जाता है॥ ३॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

सरनि जोगु सुनि सरनी आए ॥
हे भगवान ! यह सुनकर कि तू जीवों को शरण देने में समर्थ है,
अतः हम तेरी शरण में आए हैं।

करि किरपा प्रभ आप मिलाए ॥
प्रभु ने दया करके हमें अपने साथ मिला लिया है।

मिटि गए बैर भए सभ रेन ॥
अब हमारे वैर मिट गए हैं और हम सबकी चरण-धूलि हो गए हैं।

अम्रित नामु साधसंगि लैन ॥
साध संगत से नाम-अमृत लेने वाले हुए हैं।

सुप्रसंन भए गुरदेव ॥
गुरुदेव हम पर सुप्रसन्न हो गए हैं और

पूरन होई सेवक की सेव ॥
सेवक की सेवा सफल हो गई है।

आल जंजाल बिकार ते रहते ॥
हम सांसारिक धंधों एवं विकारों से बच गए हैं,

राम नाम सुनि रसना कहते ॥
राम का नाम सुनकर और अपनी जीभ से इसको उच्चरित करने से।

करि प्रसादु दइआ प्रभि धारी ॥
भगवान ने कृपा करके (हम पर) यह दया की है और

नानक निबही खेप हमारी ॥४॥
हे नानक ! हमारा किया हुआ परिश्रम
प्रभु-दरबार में सफल हो गया है ॥४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

प्रभ की उसतति करहु संत मीत ॥
हे संत मित्रो ! प्रभु की महिमा-स्तुति

सावधान एकागर चीत ॥
सावधान एवं एकाग्रचित होकर करो।

सुखमनी सहज गोबिंद गुन नाम ॥
सुखमनी में सहज सुख एवं गोविन्द की महिमा एवं नाम है।

जिसु मनि बसै सु होत निधान ॥
जिसके मन में यह बसती है, वह धनवान बन जाता है।

सरब इछा ता की पूरन होइ ॥
उसकी तमाम मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।

प्रधान पुरखु प्रगटु सभ लोइ ॥
वह प्रधान पुरुष बन जाता है और सारी दुनिया में लोकप्रिय हो जाता है।

सभ ते ऊच पाए असथानु ॥
वह सर्वोच्च निवास पा लेता है।

बहुरि न होवै आवन जानु ॥
उसे पुनः जीवन-मृत्यु का चक्र नहीं पड़ता।

हरि धनु खाटि चलै जनु सोइ ॥
वह मनुष्य हरि नामरूपी धन प्राप्त करके दुनिया से चला जाता है

नानक जिसहि परापति होइ ॥५॥
हे नानक ! जिस इन्सान को (सुखमनी) यह देन (ईश्वर से) मिलती है ॥५॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

खेम सांति रिधि नव निधि ॥
सहज सुख, शांति, रिद्धियां, नवनिधियां,

बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥
बुद्धि, ज्ञान एवं सर्व सिद्धियों उस प्राणी को मिलती हैं,

बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु ॥
विद्या, तपस्या, योग, प्रभु का ध्यान,

गिआनु स्रेसट ऊतम इसनानु ॥
श्रेष्ठ ज्ञान, उत्तम स्नान,

चारि पदारथ कमल प्रगास ॥
चारों पदार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष),
हृदय कमल का खिलना,

सभ कै मधि सगल ते उदास ॥
सब में रहते हुए सबसे तटस्थ रहना,

सुंदरु चतुरु तत का बेता ॥
सुन्दरता, बुद्धिमत्ता एवं तत्ववेत्ता,

समदरसी एक द्रिसटेता ॥
समदर्शी एवं एक दृष्टि से ईश्वर को देखना,

इह फल तिसु जन कै मुखि भने ॥
हे नानक ! ये तमाम फल उसे मिलते हैं,

गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥
जो अपने मुँह से (सुखमनी) सुखों की मणि का जाप करता है
और गुरु के वचन तथा प्रभु के नाम की महिमा मन लगाकर सुनता है॥ ६॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

इहु निधानु जपै मनि कोइ ॥
जो भी जीव इस गुणों के भण्डार का ह्रदय से जाप करता है,

सभ जुग महि ता की गति होइ ॥
उसकी समस्त युगों में गति हो जाती है।

गुण गोबिंद नाम धुनि बाणी ॥
यह वाणी गोबिन्द का यश एवं नाम की ध्वनि है,

सिम्रिति सासत्र बेद बखाणी ॥
जिस बारे स्मृतियों, शास्त्र एवं वेद वर्णन करते हैं।

सगल मतांत केवल हरि नाम ॥
समस्त मतों (धर्मो) का सारांश भगवान का नाम ही है।

गोबिंद भगत कै मनि बिस्राम ॥
इस नाम का निवास गोविन्द के भक्त के हृदय में होता है।

कोटि अप्राध साधसंगि मिटै ॥
करोड़ों ही अपराध संतों की संगति करने से नाश हो जाते हैं।

संत क्रिपा ते जम ते छुटै ॥
संतों की कृपा से जीव यमों से छूट जाता है।

जा कै मसतकि करम प्रभि पाए ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति के मस्तक पर ईश्वर ने भाग्य लिख दिया है,

साध सरणि नानक ते आए ॥७॥
वही व्यक्ति साधु की शरण में आता है॥ ७॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24

जिसु मनि बसै सुनै लाइ प्रीति ॥
जिस पुरुष के हृदय में (सुखमनी) निवास करती है
और जो इसे प्रेमपूर्वक सुनता है,

तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति ॥
वही हरि-प्रभु को स्मरण करता है।

जनम मरन ता का दूखु निवारै ॥
उसके जन्म-मरण के दुःख नाश हो जाते हैं।

दुलभ देह ततकाल उधारै ॥
वह इस दुर्लभ शरीर को तत्काल विकारों से बचा लेता है।

निरमल सोभा अम्रित ता की बानी ॥
उसकी शोभा निर्मल है एवं उसकी वाणी अमृत रूप होती है।

एकु नामु मन माहि समानी ॥
एक ईश्वर का नाम ही उसके मन में समाया रहता है।

दूख रोग बिनसे भै भरम ॥
दुःख, रोग, भय एवं दुविधा उससे दूर हो जाते हैं।

साध नाम निरमल ता के करम ॥
उसका नाम साधु हो जाता है और उसके कर्म पवित्र होते हैं।

सभ ते ऊच ता की सोभा बनी ॥
उसकी शोभा सर्वोच्च हो जाती है।

नानक इह गुणि नामु सुखमनी ॥८॥२४॥
हे नानक ! इन गुणों के कारण (ईश्वर की)
इस वाणी का नाम सुखमनी है॥ ८॥ २४॥

Sukhmani Sahib Ashtpadi 24