स्रावग सु्ध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥ सूर सुरारदन सु्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥ सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥ स्री भगवान की भाइ क्रिपा हू ते एक रती बिनु एक रती के ॥१॥२१॥
माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥ कोट तुरंग कुरंग से कूदत पउन के गउन कउ जात निवारे ॥ भारी भुजान के भूप भली बिधि निआवत सीस न जात बिचारे ॥ एते भए तु कहा भए भूपति अंत कौ नांगे ही पांइ पधारे ॥२॥२२॥
जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल म्रिदंग नगारे ॥ गुंजत गूड़ गजान के सुंदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥ भूत भवि्ख भवान के भूपत कउनु गनै नहीं जात बिचारे ॥ स्री पति स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥
तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥ बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥ पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजारक देखै ॥ स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४॥२४॥
सु्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥ भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥ तोरि अरीन मरोरि मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥ स्री पति स्री भगवान क्रिपा बिनु तिआगि जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥
बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछ्या ॥ तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मल्या ॥ गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लव्या ॥ साहिबु स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिव्या ॥६॥२६॥
दानव देव फनिंद निसाचर भूत भवि्ख भवान जपैंगे ॥ जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥ पुंन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुंज खपैंगे ॥ साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अवलोक चपैंगे ॥७॥२७॥
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन त्रिलोक को राज करैंगे ॥ कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअमबर साज बरैंगे ॥ ब्रहम महेसर बिसन सचीपित अंत फसे जम फासि परैंगे ॥ जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥
कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥ न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥ बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥ साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥२९॥
काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥ काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥ कोउ बुतान को पूजत है पसु कोउ म्रितान को पूजन धाइओ ॥ कूर क्रिआ उरिझओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥