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star Asa Di Vaar in Hindi star

आसा दी वार
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

आसा महला ४ छंत घरु ४ ॥
हरि अम्रित भिंने लोइणा मनु प्रेमि रतंना राम राजे ॥
मनु रामि कसवटी लाइआ कंचनु सोविंना ॥
गुरमुखि रंगि चलूलिआ मेरा मनु तनो भिंना ॥
जनु नानकु मुसकि झकोलिआ सभु जनमु धनु धंना ॥१॥

ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
आसा महला १ ॥
वार सलोका नालि सलोक भी महले पहिले के लिखे टुंडे अस राजै की धुनी ॥

सलोकु मः १ ॥
बलिहारी गुर आपणे दिउहाड़ी सद वार ॥
जिनि माणस ते देवते कीए करत न लागी वार ॥१॥

महला २ ॥
जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार ॥
एते चानण होदिआं गुर बिनु घोर अंधार ॥२॥

मः १ ॥
नानक गुरू न चेतनी मनि आपणै सुचेत ॥
छुटे तिल बूआड़ जिउ सुंञे अंदरि खेत ॥
खेतै अंदरि छुटिआ कहु नानक सउ नाह ॥
फलीअहि फुलीअहि बपुड़े भी तन विचि सुआह ॥३॥

पउड़ी ॥
आपीन्है आपु साजिओ आपीन्है रचिओ नाउ ॥
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ ॥
दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ ॥
तूं जाणोई सभसै दे लैसहि जिंदु कवाउ ॥
करि आसणु डिठो चाउ ॥१॥

(छंत) हरि प्रेम बानी मनु मार्या अणियाले अणिया राम राजे ॥
जिसु लागी पीर पिरंम की सो जानै जरिया ॥
जीवन मुकति सो आखीऐ मरि जीवै मरिया ॥
जन नानक सतिगुरु मेलि हरि जगु दुतरु तरिया ॥२॥

सलोकु मः १ ॥
सचे तेरे खंड सचे ब्रहमंड ॥
सचे तेरे लोअ सचे आकार ॥
सचे तेरे करणे सरब बीचार ॥
सचा तेरा अमरु सचा दीबाणु ॥
सचा तेरा हुकमु सचा फुरमाणु ॥
सचा तेरा करमु सचा नीसाणु ॥
सचे तुधु आखहि लख करोड़ि ॥
सचै सभि ताणि सचै सभि जोरि ॥
सची तेरी सिफति सची सालाह ॥
सची तेरी कुदरति सचे पातिसाह ॥
नानक सचु धिआइनि सचु ॥
जो मरि जमे सु कचु निकचु ॥१॥

मः १ ॥
वडी वडिआई जा वडा नाउ ॥
वडी वडिआई जा सचु निआउ ॥
वडी वडिआई जा निहचल थाउ ॥
वडी वडिआई जाणै आलाउ ॥
वडी वडिआई बुझै सभि भाउ ॥
वडी वडिआई जा पुछि न दाति ॥
वडी वडिआई जा आपे आपि ॥
नानक कार न कथनी जाइ ॥
कीता करणा सरब रजाइ ॥२॥

महला २ ॥
इहु जगु सचै की है कोठड़ी सचे का विचि वासु ॥
इकन्हा हुकमि समाइ लए इकन्हा हुकमे करे विणासु ॥
इकन्हा भाणै कढि लए इकन्हा माइआ विचि निवासु ॥
एव भि आखि न जापई जि किसै आणे रासि ॥
नानक गुरमुखि जाणीऐ जा कउ आपि करे परगासु ॥३॥

पउड़ी ॥
नानक जीअ उपाइ कै लिखि नावै धरमु बहालिआ ॥
ओथै सचे ही सचि निबड़ै चुणि वखि कढे जजमालिआ ॥
थाउ न पाइनि कूड़िआर मुह काल्है दोजकि चालिआ ॥
तेरै नाइ रते से जिणि गए हारि गए सि ठगण वालिआ ॥
लिखि नावै धरमु बहालिआ ॥२॥

(छंत) हम मूरख मुगध सरणागती मिलु गोविन्द रंगा राम राजे ॥
गुरि पूरै हरि पायआ हरि भगति इक मंगा ॥
मेरा मनु तनु सबदि विगास्या जपि अनत तरंगा ॥
मिलि संत जना हरि पायआ नानक सतसंगा ॥३॥

सलोक मः १ ॥
विसमादु नाद विसमादु वेद ॥
विसमादु जीअ विसमादु भेद ॥
विसमादु रूप विसमादु रंग ॥
विसमादु नागे फिरहि जंत ॥
विसमादु पउणु विसमादु पाणी ॥
विसमादु अगनी खेडहि विडाणी ॥
विसमादु धरती विसमादु खाणी ॥
विसमादु सादि लगहि पराणी ॥
विसमादु संजोगु विसमादु विजोगु ॥
विसमादु भुख विसमादु भोगु ॥
विसमादु सिफति विसमादु सालाह ॥
विसमादु उझड़ विसमादु राह ॥
विसमादु नेड़ै विसमादु दूरि ॥
विसमादु देखै हाजरा हजूरि ॥
वेखि विडाणु रहिआ विसमादु ॥
नानक बुझणु पूरै भागि ॥१॥

मः १ ॥
कुदरति दिसै कुदरति सुणीऐ कुदरति भउ सुख सारु ॥
कुदरति पाताली आकासी कुदरति सरब आकारु ॥
कुदरति वेद पुराण कतेबा कुदरति सरब वीचारु ॥
कुदरति खाणा पीणा पैन्हणु कुदरति सरब पिआरु ॥
कुदरति जाती जिनसी रंगी कुदरति जीअ जहान ॥
कुदरति नेकीआ कुदरति बदीआ कुदरति मानु अभिमानु ॥
कुदरति पउणु पाणी बैसंतरु कुदरति धरती खाकु ॥
सभ तेरी कुदरति तूं कादिरु करता पाकी नाई पाकु ॥
नानक हुकमै अंदरि वेखै वरतै ताको ताकु ॥२॥

पउड़ी ॥
आपीन्है भोग भोगि कै होइ भसमड़ि भउरु सिधाइआ ॥
वडा होआ दुनीदारु गलि संगलु घति चलाइआ ॥
अगै करणी कीरति वाचीऐ बहि लेखा करि समझाइआ ॥
थाउ न होवी पउदीई हुणि सुणीऐ किआ रूआइआ ॥
मनि अंधै जनमु गवाइआ ॥३॥

(छंत) दीन दयाल सुनि बेनती हरि प्रभ हरि रायआ राम राजे ॥
हउ मागउ सरनि हरि नाम की हरि हरि मुखि पायआ ॥
भगति वछलु हरि बिरदु है हरि लाज रखायआ ॥
जनु नानकु सरणागती हरि नामि तरायआ ॥४॥१॥८॥

सलोक मः १ ॥
भै विचि पवणु वहै सदवाउ ॥
भै विचि चलहि लख दरीआउ ॥
भै विचि अगनि कढै वेगारि ॥
भै विचि धरती दबी भारि ॥
भै विचि इंदु फिरै सिर भारि ॥
भै विचि राजा धरम दुआरु ॥
भै विचि सूरजु भै विचि चंदु ॥
कोह करोड़ी चलत न अंतु ॥
भै विचि सिध बुध सुर नाथ ॥
भै विचि आडाणे आकास ॥
भै विचि जोध महाबल सूर ॥
भै विचि आवहि जावहि पूर ॥
सगलिआ भउ लिखिआ सिरि लेखु ॥
नानक निरभउ निरंकारु सचु एकु ॥१॥
मः १ ॥
नानक निरभउ निरंकारु होरि केते राम रवाल ॥
केतीआ कंन्ह कहाणीआ केते बेद बीचार ॥
केते नचहि मंगते गिड़ि मुड़ि पूरहि ताल ॥
बाजारी बाजार महि आइ कढहि बाजार ॥
गावहि राजे राणीआ बोलहि आल पताल ॥
लख टकिआ के मुंदड़े लख टकिआ के हार ॥
जितु तनि पाईअहि नानका से तन होवहि छार ॥
गिआनु न गलीई ढूढीऐ कथना करड़ा सारु ॥
करमि मिलै ता पाईऐ होर हिकमति हुकमु खुआरु ॥२॥

पउड़ी ॥
नदरि करहि जे आपणी ता नदरी सतिगुरु पाइआ ॥
एहु जीउ बहुते जनम भरमिआ ता सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥
सतिगुर जेवडु दाता को नही सभि सुणिअहु लोक सबाइआ ॥
सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन्ही विचहु आपु गवाइआ ॥
जिनि सचो सचु बुझाइआ ॥४॥

(छंत) आसा महला ४ ॥
गुरमुखि ढूंढि ढूढेद्या हरि सजनु लधा राम राजे ॥
कंचन कायआ कोट गड़ विचि हरि हरि सिधा ॥
हरि हरि हीरा रतनु है मेरा मनु तनु विधा ॥
धुरि भाग वडे हरि पायआ नानक रसि गुधा ॥१॥

सलोक मः १ ॥
घड़ीआ सभे गोपीआ पहर कंन्ह गोपाल ॥
गहणे पउणु पाणी बैसंतरु चंदु सूरजु अवतार ॥
सगली धरती मालु धनु वरतणि सरब जंजाल ॥
नानक मुसै गिआन विहूणी खाइ गइआ जमकालु ॥१॥

मः १ ॥
वाइनि चेले नचनि गुर ॥
पैर हलाइनि फेरन्हि सिर ॥
उडि उडि रावा झाटै पाइ ॥
वेखै लोकु हसै घरि जाइ ॥
रोटीआ कारणि पूरहि ताल ॥
आपु पछाड़हि धरती नालि ॥
गावनि गोपीआ गावनि कान्ह ॥
गावनि सीता राजे राम ॥
निरभउ निरंकारु सचु नामु ॥
जा का कीआ सगल जहानु ॥
सेवक सेवहि करमि चड़ाउ ॥
भिंनी रैणि जिन्हा मनि चाउ ॥
सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥
नदरी करमि लघाए पारि ॥
कोलू चरखा चकी चकु ॥
थल वारोले बहुतु अनंतु ॥
लाटू माधाणीआ अनगाह ॥
पंखी भउदीआ लैनि न साह ॥
सूऐ चाड़ि भवाईअहि जंत ॥
नानक भउदिआ गणत न अंत ॥
बंधन बंधि भवाए सोइ ॥
पइऐ किरति नचै सभु कोइ ॥
नचि नचि हसहि चलहि से रोइ ॥
उडि न जाही सिध न होहि ॥
नचणु कुदणु मन का चाउ ॥
नानक जिन्ह मनि भउ तिन्हा मनि भाउ ॥२॥

पउड़ी ॥
नाउ तेरा निरंकारु है नाइ लइऐ नरकि न जाईऐ ॥
जीउ पिंडु सभु तिस दा दे खाजै आखि गवाईऐ ॥
जे लोड़हि चंगा आपणा करि पुंनहु नीचु सदाईऐ ॥
जे जरवाणा परहरै जरु वेस करेदी आईऐ ॥
को रहै न भरीऐ पाईऐ ॥५॥

(छंत) पंथु दसावा नित खड़ी मुंध जोबनि बाली राम राजे ॥
हरि हरि नामु चेताय गुर हरि मारगि चाली ॥
मेरै मनि तनि नामु आधारु है हउमै बिखु जाली ॥
जन नानक सतिगुरु मेलि हरि हरि मिल्या बनवाली ॥२॥

सलोक मः १ ॥
मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥
बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥
हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥
तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥
जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥
सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥
सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥
दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥
चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥
इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥
जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥
ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥
नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥
सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥

मः १ ॥
मिटी मुसलमान की पेड़ै पई कुम्हिआर ॥
घड़ि भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार ॥
जलि जलि रोवै बपुड़ी झड़ि झड़ि पवहि अंगिआर ॥
नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणै करतारु ॥२॥

पउड़ी ॥
बिनु सतिगुर किनै न पाइओ बिनु सतिगुर किनै न पाइआ ॥
सतिगुर विचि आपु रखिओनु करि परगटु आखि सुणाइआ ॥
सतिगुर मिलिऐ सदा मुकतु है जिनि विचहु मोहु चुकाइआ ॥
उतमु एहु बीचारु है जिनि सचे सिउ चितु लाइआ ॥
जगजीवनु दाता पाइआ ॥६॥

(छंत) गुरमुखि प्यारे आइ मिलु मै चिरी विछुन्ने राम राजे ॥
मेरा मनु तनु बहुतु बैराग्या हरि नैन रसि भिन्ने ॥
मै हरि प्रभु प्यारा दसि गुरु मिलि हरि मनु मन्ने ॥
हउ मूरखु कारै लाईआ नानक हरि कंमे ॥३॥

सलोक मः १ ॥
हउ विचि आइआ हउ विचि गइआ ॥
हउ विचि जमिआ हउ विचि मुआ ॥
हउ विचि दिता हउ विचि लइआ ॥
हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ ॥
हउ विचि सचिआरु कूड़िआरु ॥
हउ विचि पाप पुंन वीचारु ॥
हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु ॥
हउ विचि हसै हउ विचि रोवै ॥
हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै ॥
हउ विचि जाती जिनसी खोवै ॥
हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा ॥
मोख मुकति की सार न जाणा ॥
हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ ॥
हउमै करि करि जंत उपाइआ ॥
हउमै बूझै ता दरु सूझै ॥
गिआन विहूणा कथि कथि लूझै ॥
नानक हुकमी लिखीऐ लेखु ॥
जेहा वेखहि तेहा वेखु ॥१॥

महला २ ॥
हउमै एहा जाति है हउमै करम कमाहि ॥
हउमै एई बंधना फिरि फिरि जोनी पाहि ॥
हउमै किथहु ऊपजै कितु संजमि इह जाइ ॥
हउमै एहो हुकमु है पइऐ किरति फिराहि ॥
हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि ॥
किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि ॥
नानकु कहै सुणहु जनहु इतु संजमि दुख जाहि ॥२॥

पउड़ी ॥
सेव कीती संतोखीईजिन्ही सचो सचु धिआइआ ॥
ओन्ही मंदै पैरु न रखिओ करि सुक्रितु धरमु कमाइआ ॥
ओन्ही दुनीआ तोड़े बंधना अंनु पाणी थोड़ा खाइआ ॥
तूं बखसीसी अगला नित देवहि चड़हि सवाइआ ॥
वडिआई वडा पाइआ ॥७॥

(छंत) गुर अंमृत भिन्नी देहुरी अंमृतु बुरके राम राजे ॥
जिना गुरबानी मनि भाईआ अंमृति छकि छके ॥
गुर तुठै हरि पायआ चूके धक धके ॥
हरि जनु हरि हरि होया नानकु हरि इके ॥४॥२॥९॥

सलोक मः १ ॥
पुरखां बिरखां तीरथां तटां मेघां खेतांह ॥
दीपां लोआं मंडलां खंडां वरभंडांह ॥
अंडज जेरज उतभुजां खाणी सेतजांह ॥
सो मिति जाणै नानका सरां मेरां जंताह ॥
नानक जंत उपाइ कै समाले सभनाह ॥
जिनि करतै करणा कीआ चिंता भि करणी ताह ॥
सो करता चिंता करे जिनि उपाइआ जगु ॥
तिसु जोहारी सुअसति तिसु तिसु दीबाणु अभगु ॥
नानक सचे नाम बिनु किआ टिका किआ तगु ॥१॥

मः १ ॥
लख नेकीआ चंगिआईआ लख पुंना परवाणु ॥
लख तप उपरि तीरथां सहज जोग बेबाण ॥
लख सूरतण संगराम रण महि छुटहि पराण ॥
लख सुरती लख गिआन धिआन पड़ीअहि पाठ पुराण ॥
जिनि करतै करणा कीआ लिखिआ आवण जाणु ॥
नानक मती मिथिआ करमु सचा नीसाणु ॥२॥

पउड़ी ॥
सचा साहिबु एकु तूं जिनि सचो सचु वरताइआ ॥
जिसु तूं देहि तिसु मिलै सचु ता तिन्ही सचु कमाइआ ॥
सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन्ह कै हिरदै सचु वसाइआ ॥
मूरख सचु न जाणन्ही मनमुखी जनमु गवाइआ ॥
विचि दुनीआ काहे आइआ ॥८॥

(छंत) आसा महला ४ ॥
हरि अंमृत भगति भंडार है गुर सतिगुर पासे राम राजे ॥
गुरु सतिगुरु सचा साहु है सिख देइ हरि रासे ॥
धनु धन्नु वणजारा वणजु है गुरु साहु साबासे ॥
जनु नानकु गुरु तिनी पायआ जिन धुरि लिखतु लिलाटि लिखासे ॥१॥

सलोकु मः १ ॥
पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ ॥
पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात ॥
पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास ॥
पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास ॥
नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख ॥१॥

मः १ ॥
लिखि लिखि पड़िआ ॥
तेता कड़िआ ॥
बहु तीरथ भविआ ॥
तेतो लविआ ॥
बहु भेख कीआ देही दुखु दीआ ॥
सहु वे जीआ अपणा कीआ ॥
अंनु न खाइआ सादु गवाइआ ॥
बहु दुखु पाइआ दूजा भाइआ ॥
बसत्र न पहिरै ॥
अहिनिसि कहरै ॥
मोनि विगूता ॥
किउ जागै गुर बिनु सूता ॥
पग उपेताणा ॥
अपणा कीआ कमाणा ॥
अलु मलु खाई सिरि छाई पाई ॥
मूरखि अंधै पति गवाई ॥
विणु नावै किछु थाइ न पाई ॥
रहै बेबाणी मड़ी मसाणी ॥
अंधु न जाणै फिरि पछुताणी ॥
सतिगुरु भेटे सो सुखु पाए ॥
हरि का नामु मंनि वसाए ॥
नानक नदरि करे सो पाए ॥
आस अंदेसे ते निहकेवलु हउमै सबदि जलाए ॥२॥

पउड़ी ॥
भगत तेरै मनि भावदे दरि सोहनि कीरति गावदे ॥
नानक करमा बाहरे दरि ढोअ न लहन्ही धावदे ॥
इकि मूलु न बुझन्हि आपणा अणहोदा आपु गणाइदे ॥
हउ ढाढी का नीच जाति होरि उतम जाति सदाइदे ॥
तिन्ह मंगा जि तुझै धिआइदे ॥९॥

(छंत) सचु साहु हमारा तूं धनी सभु जगतु वणजारा राम राजे ॥
सभ भांडे तुधै साज्या विचि वसतु हरि थारा ॥
जो पावह भांडे विचि वसतु सा निकलै क्या कोयी करे वेचारा ॥
जन नानक कउ हरि बखस्या हरि भगति भंडारा ॥२॥

सलोकु मः १ ॥
कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु ॥
कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु ॥
कूड़ु सुइना कूड़ु रुपा कूड़ु पैन्हणहारु ॥
कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु ॥
कूड़ु मीआ कूड़ु बीबी खपि होए खारु ॥
कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु ॥
किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु ॥
कूड़ु मिठा कूड़ु माखिउ कूड़ु डोबे पूरु ॥
नानकु वखाणै बेनती तुधु बाझु कूड़ो कूड़ु ॥१॥

मः १ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइ ॥
कूड़ की मलु उतरै तनु करे हछा धोइ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा सचि धरे पिआरु ॥
नाउ सुणि मनु रहसीऐ ता पाए मोख दुआरु ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा जुगति जाणै जीउ ॥
धरति काइआ साधि कै विचि देइ करता बीउ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा सिख सची लेइ ॥
दइआ जाणै जीअ की किछु पुंनु दानु करेइ ॥
सचु तां परु जाणीऐ जा आतम तीरथि करे निवासु ॥
सतिगुरू नो पुछि कै बहि रहै करे निवासु ॥
सचु सभना होइ दारू पाप कढै धोइ ॥
नानकु वखाणै बेनती जिन सचु पलै होइ ॥२॥

पउड़ी ॥
दानु महिंडा तली खाकु जे मिलै त मसतकि लाईऐ ॥
कूड़ा लालचु छडीऐ होइ इक मनि अलखु धिआईऐ ॥
फलु तेवेहो पाईऐ जेवेही कार कमाईऐ ॥
जे होवै पूरबि लिखिआ ता धूड़ि तिन्हा दी पाईऐ ॥
मति थोड़ी सेव गवाईऐ ॥१०॥

(छंत) हम क्या गुन तेरे विथरह सुआमी तूं अपर अपारो राम राजे ॥
हरि नामु सालाहह दिनु राति एहा आस आधारो ॥
हम मूरख किछूय न जाणहा किव पावह पारो ॥
जनु नानकु हरि का दासु है हरि दास पनेहारो ॥३॥

सलोकु मः १ ॥
सचि कालु कूड़ु वरतिआ कलि कालख बेताल ॥
बीउ बीजि पति लै गए अब किउ उगवै दालि ॥
जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥
नानक पाहै बाहरा कोरै रंगु न सोइ ॥
भै विचि खु्मबि चड़ाईऐ सरमु पाहु तनि होइ ॥
नानक भगती जे रपै कूड़ै सोइ न कोइ ॥१॥

मः १ ॥
लबु पापु दुइ राजा महता कूड़ु होआ सिकदारु ॥
कामु नेबु सदि पुछीऐ बहि बहि करे बीचारु ॥
अंधी रयति गिआन विहूणी भाहि भरे मुरदारु ॥
गिआनी नचहि वाजे वावहि रूप करहि सीगारु ॥
ऊचे कूकहि वादा गावहि जोधा का वीचारु ॥
मूरख पंडित हिकमति हुजति संजै करहि पिआरु ॥
धरमी धरमु करहि गावावहि मंगहि मोख दुआरु ॥
जती सदावहि जुगति न जाणहि छडि बहहि घर बारु ॥
सभु को पूरा आपे होवै घटि न कोई आखै ॥
पति परवाणा पिछै पाईऐ ता नानक तोलिआ जापै ॥२॥

मः १ ॥
वदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइ ॥
सभनी छाला मारीआ करता करे सु होइ ॥
अगै जाति न जोरु है अगै जीउ नवे ॥
जिन की लेखै पति पवै चंगे सेई केइ ॥३॥

पउड़ी ॥
धुरि करमु जिना कउ तुधु पाइआ ता तिनी खसमु धिआइआ ॥
एना जंता कै वसि किछु नाही तुधु वेकी जगतु उपाइआ ॥
इकना नो तूं मेलि लैहि इकि आपहु तुधु खुआइआ ॥
गुर किरपा ते जाणिआ जिथै तुधु आपु बुझाइआ ॥
सहजे ही सचि समाइआ ॥११॥

(छंत) ज्यु भावै त्यु राखि लै हम सरनि प्रभ आए राम राजे ॥
हम भूलि विगाड़ह दिनसु राति हरि लाज रखाए ॥
हम बारिक तूं गुरु पिता है दे मति समझाए ॥
जनु नानकु दासु हरि कांढ्या हरि पैज रखाए ॥४॥३॥१०॥

सलोकु मः १ ॥
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥
रहाउ ॥
जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥
तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥ मः २ ॥
जोग सबदं गिआन सबदं बेद सबदं ब्राहमणह ॥
खत्री सबदं सूर सबदं सूद्र सबदं परा क्रितह ॥
सरब सबदं एक सबदं जे को जाणै भेउ ॥
नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥३॥
मः २ ॥
एक क्रिसनं सरब देवा देव देवा त आतमा ॥
आतमा बासुदेवस्यि जे को जाणै भेउ ॥
नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥४॥

मः १ ॥
कु्मभे बधा जलु रहै जल बिनु कु्मभु न होइ ॥
गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥

पउड़ी ॥
पड़िआ होवै गुनहगारु ता ओमी साधु न मारीऐ ॥
जेहा घाले घालणा तेवेहो नाउ पचारीऐ ॥
ऐसी कला न खेडीऐ जितु दरगह गइआ हारीऐ ॥
पड़िआ अतै ओमीआ वीचारु अगै वीचारीऐ ॥
मुहि चलै सु अगै मारीऐ ॥१२॥

(छंत) आसा महला ४ ॥
जिन मसतकि धुरि हरि लिख्या तिना सतिगुरु मिल्या राम राजे ॥
अग्यानु अंधेरा कट्या गुर ग्यानु घटि बल्या ॥
हरि लधा रतनु पदारथो फिरि बहुड़ि न चल्या ॥
जन नानक नामु आराध्या आराधि हरि मिल्या ॥१॥

सलोकु मः १ ॥
नानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहु ॥
जुगु जुगु फेरि वटाईअहि गिआनी बुझहि ताहि ॥
सतजुगि रथु संतोख का धरमु अगै रथवाहु ॥
त्रेतै रथु जतै का जोरु अगै रथवाहु ॥
दुआपुरि रथु तपै का सतु अगै रथवाहु ॥
कलजुगि रथु अगनि का कूड़ु अगै रथवाहु ॥१॥

मः १ ॥
साम कहै सेत्मबरु सुआमी सच महि आछै साचि रहे ॥
सभु को सचि समावै ॥
रिगु कहै रहिआ भरपूरि ॥
राम नामु देवा महि सूरु ॥
नाइ लइऐ पराछत जाहि ॥
नानक तउ मोखंतरु पाहि ॥
जुज महि जोरि छली चंद्रावलि कान्ह क्रिसनु जादमु भइआ ॥
पारजातु गोपी लै आइआ बिंद्राबन महि रंगु कीआ ॥
कलि महि बेदु अथरबणु हूआ नाउ खुदाई अलहु भइआ ॥
नील बसत्र ले कपड़े पहिरे तुरक पठाणी अमलु कीआ ॥
चारे वेद होए सचिआर ॥
पड़हि गुणहि तिन्ह चार वीचार ॥
भाउ भगति करि नीचु सदाए ॥
तउ नानक मोखंतरु पाए ॥२॥

पउड़ी ॥
सतिगुर विटहु वारिआ जितु मिलिऐ खसमु समालिआ ॥
जिनि करि उपदेसु गिआन अंजनु दीआ इन्ही नेत्री जगतु निहालिआ ॥
खसमु छोडि दूजै लगे डुबे से वणजारिआ ॥
सतिगुरू है बोहिथा विरलै किनै वीचारिआ ॥
करि किरपा पारि उतारिआ ॥१३॥

(छंत) जिनी ऐसा हरि नामु न चेत्यो से काहे जगि आए राम राजे ॥
इहु मानस जनमु दुलंभु है नाम बिना बिरथा सभु जाए ॥
हुनि वतै हरि नामु न बीज्यो अगै भुखा क्या खाए ॥
मनमुखा नो फिरि जनमु है नानक हरि भाए ॥२॥

सलोकु मः १ ॥
सिमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचु ॥
ओइ जि आवहि आस करि जाहि निरासे कितु ॥
फल फिके फुल बकबके कमि न आवहि पत ॥
मिठतु नीवी नानका गुण चंगिआईआ ततु ॥
सभु को निवै आप कउ पर कउ निवै न कोइ ॥
धरि ताराजू तोलीऐ निवै सु गउरा होइ ॥
अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि ॥
सीसि निवाइऐ किआ थीऐ जा रिदै कुसुधे जाहि ॥१॥

मः १ ॥
पड़ि पुसतक संधिआ बादं ॥
सिल पूजसि बगुल समाधं ॥
मुखि झूठ बिभूखण सारं ॥
त्रैपाल तिहाल बिचारं ॥
गलि माला तिलकु लिलाटं ॥
दुइ धोती बसत्र कपाटं ॥
जे जाणसि ब्रहमं करमं ॥
सभि फोकट निसचउ करमं ॥
कहु नानक निहचउ धिआवै ॥
विणु सतिगुर वाट न पावै ॥२॥

पउड़ी ॥
कपड़ु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा ॥
मंदा चंगा आपणा आपे ही कीता पावणा ॥
हुकम कीए मनि भावदे राहि भीड़ै अगै जावणा ॥
नंगा दोजकि चालिआ ता दिसै खरा डरावणा ॥
करि अउगण पछोतावणा ॥१४॥

(छंत) तूं हरि तेरा सभु को सभि तुधु उपाए राम राजे ॥
किछु हाथि किसै दै किछु नाही सभि चलह चलाए ॥
जिन तूं मेलह प्यारे से तुधु मिलह जो हरि मनि भाए ॥
जन नानक सतिगुरु भेट्या हरि नामि तराए ॥३॥

सलोकु मः १ ॥
दइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ॥
एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घतु ॥
ना एहु तुटै न मलु लगै ना एहु जलै न जाइ ॥
धंनु सु माणस नानका जो गलि चले पाइ ॥
चउकड़ि मुलि अणाइआ बहि चउकै पाइआ ॥
सिखा कंनि चड़ाईआ गुरु ब्राहमणु थिआ ॥
ओहु मुआ ओहु झड़ि पइआ वेतगा गइआ ॥१॥

मः १ ॥
लख चोरीआ लख जारीआ लख कूड़ीआ लख गालि ॥
लख ठगीआ पहिनामीआ राति दिनसु जीअ नालि ॥
तगु कपाहहु कतीऐ बाम्हणु वटे आइ ॥
कुहि बकरा रिंन्हि खाइआ सभु को आखै पाइ ॥
होइ पुराणा सुटीऐ भी फिरि पाईऐ होरु ॥
नानक तगु न तुटई जे तगि होवै जोरु ॥२॥

मः १ ॥
नाइ मंनिऐ पति ऊपजै सालाही सचु सूतु ॥
दरगह अंदरि पाईऐ तगु न तूटसि पूत ॥३॥

मः १ ॥
तगु न इंद्री तगु न नारी ॥
भलके थुक पवै नित दाड़ी ॥
तगु न पैरी तगु न हथी ॥
तगु न जिहवा तगु न अखी ॥
वेतगा आपे वतै ॥
वटि धागे अवरा घतै ॥
लै भाड़ि करे वीआहु ॥
कढि कागलु दसे राहु ॥
सुणि वेखहु लोका एहु विडाणु ॥
मनि अंधा नाउ सुजाणु ॥४॥

पउड़ी ॥
साहिबु होइ दइआलु किरपा करे ता साई कार कराइसी ॥
सो सेवकु सेवा करे जिस नो हुकमु मनाइसी ॥
हुकमि मंनिऐ होवै परवाणु ता खसमै का महलु पाइसी ॥
खसमै भावै सो करे मनहु चिंदिआ सो फलु पाइसी ॥
ता दरगह पैधा जाइसी ॥१५॥

(छंत) कोयी गावै रागी नादी बेदी बहु भांति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे ॥
जिना अंतरि कपटु विकारु है तिना रोइ क्या कीजै ॥
हरि करता सभु किछु जाणदा सिरि रोग हथु दीजै ॥
जिना नानक गुरमुखि हिरदा सुधु है हरि भगति हरि लीजै ॥४॥४॥११॥

सलोक मः १ ॥
गऊ बिराहमण कउ करु लावहु गोबरि तरणु न जाई ॥
धोती टिका तै जपमाली धानु मलेछां खाई ॥
अंतरि पूजा पड़हि कतेबा संजमु तुरका भाई ॥
छोडीले पाखंडा ॥
नामि लइऐ जाहि तरंदा ॥१॥

मः १ ॥
माणस खाणे करहि निवाज ॥
छुरी वगाइनि तिन गलि ताग ॥
तिन घरि ब्रहमण पूरहि नाद ॥
उन्हा भि आवहि ओई साद ॥
कूड़ी रासि कूड़ा वापारु ॥
कूड़ु बोलि करहि आहारु ॥
सरम धरम का डेरा दूरि ॥
नानक कूड़ु रहिआ भरपूरि ॥
मथै टिका तेड़ि धोती कखाई ॥
हथि छुरी जगत कासाई ॥
नील वसत्र पहिरि होवहि परवाणु ॥
मलेछ धानु ले पूजहि पुराणु ॥
अभाखिआ का कुठा बकरा खाणा ॥
चउके उपरि किसै न जाणा ॥
दे कै चउका कढी कार ॥
उपरि आइ बैठे कूड़िआर ॥
मतु भिटै वे मतु भिटै ॥
इहु अंनु असाडा फिटै ॥
तनि फिटै फेड़ करेनि ॥
मनि जूठै चुली भरेनि ॥
कहु नानक सचु धिआईऐ ॥
सुचि होवै ता सचु पाईऐ ॥२॥

पउड़ी ॥
चितै अंदरि सभु को वेखि नदरी हेठि चलाइदा ॥
आपे दे वडिआईआ आपे ही करम कराइदा ॥
वडहु वडा वड मेदनी सिरे सिरि धंधै लाइदा ॥
नदरि उपठी जे करे सुलताना घाहु कराइदा ॥
दरि मंगनि भिख न पाइदा ॥१६॥

(छंत) आसा महला ४ ॥
जिन अंतरि हरि हरि प्रीति है ते जन सुघड़ स्याने राम राजे ॥
जे बाहरहु भुलि चुकि बोलदे भी खरे हरि भाणे ॥
हरि संता नो होरु थाउ नाही हरि मानु निमाणे ॥
जन नानक नामु दीबानु है हरि तानु सताणे ॥१॥

सलोकु मः १ ॥
जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥
अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥
वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥
नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥

मः १ ॥
जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ॥
जूठे जूठा मुखि वसै नित नित होइ खुआरु ॥
सूचे एहि न आखीअहि बहनि जि पिंडा धोइ ॥
सूचे सेई नानका जिन मनि वसिआ सोइ ॥२॥

पउड़ी ॥
तुरे पलाणे पउण वेग हर रंगी हरम सवारिआ ॥
कोठे मंडप माड़ीआ लाइ बैठे करि पासारिआ ॥
चीज करनि मनि भावदे हरि बुझनि नाही हारिआ ॥
करि फुरमाइसि खाइआ वेखि महलति मरणु विसारिआ ॥
जरु आई जोबनि हारिआ ॥१७॥

(छंत) जिथै जाय बहै मेरा सतिगुरू सो थानु सुहावा राम राजे ॥
गुरसिखी सो थानु भाल्या लै धूरि मुखि लावा ॥
गुरसिखा की घाल थाय पई जिन हरि नामु ध्यावा ॥
जिन नानकु सतिगुरु पूज्या तिन हरि पूज करावा ॥२॥

सलोकु मः १ ॥
जे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइ ॥
गोहे अतै लकड़ी अंदरि कीड़ा होइ ॥
जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ॥
पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥
सूतकु किउ करि रखीऐ सूतकु पवै रसोइ ॥
नानक सूतकु एव न उतरै गिआनु उतारे धोइ ॥१॥

मः १ ॥
मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु ॥
अखी सूतकु वेखणा पर त्रिअ पर धन रूपु ॥
कंनी सूतकु कंनि पै लाइतबारी खाहि ॥
नानक हंसा आदमी बधे जम पुरि जाहि ॥२॥

मः १ ॥
सभो सूतकु भरमु है दूजै लगै जाइ ॥
जमणु मरणा हुकमु है भाणै आवै जाइ ॥
खाणा पीणा पवित्रु है दितोनु रिजकु स्मबाहि ॥
नानक जिन्ही गुरमुखि बुझिआ तिन्हा सूतकु नाहि ॥३॥

पउड़ी ॥
सतिगुरु वडा करि सालाहीऐ जिसु विचि वडीआ वडिआईआ ॥
सहि मेले ता नदरी आईआ ॥
जा तिसु भाणा ता मनि वसाईआ ॥
करि हुकमु मसतकि हथु धरि विचहु मारि कढीआ बुरिआईआ ॥
सहि तुठै नउ निधि पाईआ ॥१८॥

(छंत) गुरसिखा मनि हरि प्रीति है हरि नाम हरि तेरी राम राजे ॥
करि सेवह पूरा सतिगुरू भुख जाय लह मेरी ॥
गुरसिखा की भुख सभ गई तिन पिछै होर खाय घनेरी ॥
जन नानक हरि पुन्नु बीज्या फिरि तोटि न आवै हरि पुन्न केरी ॥३॥

सलोकु मः १ ॥
पहिला सुचा आपि होइ सुचै बैठा आइ ॥
सुचे अगै रखिओनु कोइ न भिटिओ जाइ ॥
सुचा होइ कै जेविआ लगा पड़णि सलोकु ॥
कुहथी जाई सटिआ किसु एहु लगा दोखु ॥
अंनु देवता पाणी देवता बैसंतरु देवता लूणु पंजवा पाइआ घिरतु ॥
ता होआ पाकु पवितु ॥
पापी सिउ तनु गडिआ थुका पईआ तितु ॥
जितु मुखि नामु न ऊचरहि बिनु नावै रस खाहि ॥
नानक एवै जाणीऐ तितु मुखि थुका पाहि ॥१॥

मः १ ॥
भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु ॥
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु ॥
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ॥
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जमहि राजान ॥
भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ ॥
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ ॥
जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि ॥
नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि ॥२॥

पउड़ी ॥
सभु को आखै आपणा जिसु नाही सो चुणि कढीऐ ॥
कीता आपो आपणा आपे ही लेखा संढीऐ ॥
जा रहणा नाही ऐतु जगि ता काइतु गारबि हंढीऐ ॥
मंदा किसै न आखीऐ पड़ि अखरु एहो बुझीऐ ॥
मूरखै नालि न लुझीऐ ॥१९॥

(छंत) गुरसिखा मनि वाधाईआ जिन मेरा सतिगुरू डिठा राम राजे ॥
कोयी करि गल सुणावै हरि नाम की सो लगै गुरसिखा मनि मिठा ॥
हरि दरगह गुरसिख पैनाईअह जिना मेरा सतिगुरु तुठा ॥
जन नानकु हरि हरि होया हरि हरि मनि वुठा ॥४॥५॥१२॥

सलोकु मः १ ॥
नानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइ ॥
फिको फिका सदीऐ फिके फिकी सोइ ॥
फिका दरगह सटीऐ मुहि थुका फिके पाइ ॥
फिका मूरखु आखीऐ पाणा लहै सजाइ ॥१॥

मः १ ॥
अंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलु ॥
अठसठि तीरथ जे नावहि उतरै नाही मैलु ॥
जिन्ह पटु अंदरि बाहरि गुदड़ु ते भले संसारि ॥
तिन्ह नेहु लगा रब सेती देखन्हे वीचारि ॥
रंगि हसहि रंगि रोवहि चुप भी करि जाहि ॥
परवाह नाही किसै केरी बाझु सचे नाह ॥
दरि वाट उपरि खरचु मंगा जबै देइ त खाहि ॥
दीबानु एको कलम एका हमा तुम्हा मेलु ॥
दरि लए लेखा पीड़ि छुटै नानका जिउ तेलु ॥२॥

पउड़ी ॥
आपे ही करणा कीओ कल आपे ही तै धारीऐ ॥
देखहि कीता आपणा धरि कची पकी सारीऐ ॥
जो आइआ सो चलसी सभु कोई आई वारीऐ ॥
जिस के जीअ पराण हहि किउ साहिबु मनहु विसारीऐ ॥
आपण हथी आपणा आपे ही काजु सवारीऐ ॥२०॥

(छंत) आसा महला ४ ॥
जिना भेट्या मेरा पूरा सतिगुरू तिन हरि नामु द्रिड़ावै राम राजे ॥
तिस की त्रिसना भुख सभ उतरै जो हरि नामु ध्यावै ॥
जो हरि हरि नामु ध्याइदे तिन जमु नेड़ि न आवै ॥
जन नानक कउ हरि क्रिपा करि नित जपै हरि नामु हरि नामि तरावै ॥१॥

सलोकु महला २ ॥
एह किनेही आसकी दूजै लगै जाइ ॥
नानक आसकु कांढीऐ सद ही रहै समाइ॥
चंगै चंगा करि मंने मंदै मंदा होइ ॥
आसकु एहु न आखीऐ जि लेखै वरतै सोइ ॥१॥
महला २ ॥
सलामु जबाबु दोवै करे मुंढहु घुथा जाइ ॥
नानक दोवै कूड़ीआ थाइ न काई पाइ ॥२॥

पउड़ी ॥
जितु सेविऐ सुखु पाईऐ सो साहिबु सदा सम्हालीऐ ॥
जितु कीता पाईऐ आपणा सा घाल बुरी किउ घालीऐ ॥
मंदा मूलि न कीचई दे लमी नदरि निहालीऐ ॥
जिउ साहिब नालि न हारीऐ तेवेहा पासा ढालीऐ ॥
किछु लाहे उपरि घालीऐ ॥२१॥

(छंत) जिनी गुरमुखि नामु ध्याया तिना फिरि बिघनु न होयी राम राजे ॥
जिनी सतिगुरु पुरखु मनायआ तिन पूजे सभु कोई ॥
जिनी सतिगुरु प्यारा सेव्या तिना सुखु सद होई ॥
जिना नानकु सतिगुरु भेट्या तिना मिल्या हरि सोई ॥२॥

सलोकु महला २ ॥
चाकरु लगै चाकरी नाले गारबु वादु ॥
गला करे घणेरीआ खसम न पाए सादु ॥
आपु गवाइ सेवा करे ता किछु पाए मानु ॥
नानक जिस नो लगा तिसु मिलै लगा सो परवानु ॥१॥

महला २ ॥
जो जीइ होइ सु उगवै मुह का कहिआ वाउ ॥
बीजे बिखु मंगै अम्रितु वेखहु एहु निआउ ॥२॥

महला २ ॥
नालि इआणे दोसती कदे न आवै रासि ॥
जेहा जाणै तेहो वरतै वेखहु को निरजासि ॥
वसतू अंदरि वसतु समावै दूजी होवै पासि ॥
साहिब सेती हुकमु न चलै कही बणै अरदासि ॥
कूड़ि कमाणै कूड़ो होवै नानक सिफति विगासि ॥३॥

महला २ ॥
नालि इआणे दोसती वडारू सिउ नेहु ॥
पाणी अंदरि लीक जिउ तिस दा थाउ न थेहु ॥४॥

महला २ ॥
होइ इआणा करे कमु आणि न सकै रासि ॥
जे इक अध चंगी करे दूजी भी वेरासि ॥५॥

पउड़ी ॥
चाकरु लगै चाकरी जे चलै खसमै भाइ ॥
हुरमति तिस नो अगली ओहु वजहु भि दूणा खाइ ॥
खसमै करे बराबरी फिरि गैरति अंदरि पाइ ॥
वजहु गवाए अगला मुहे मुहि पाणा खाइ ॥
जिस दा दिता खावणा तिसु कहीऐ साबासि ॥
नानक हुकमु न चलई नालि खसम चलै अरदासि ॥२२॥

(छंत) जिना अंतरि गुरमुखि प्रीति है तिन हरि रखणहारा राम राजे ॥
तिन की निन्दा कोयी क्या करे जिन हरि नामु प्यारा ॥
जिन हरि सेती मनु मान्या सभ दुसट झख मारा ॥
जन नानक नामु ध्याया हरि रखणहारा ॥३॥

सलोकु महला २ ॥
एह किनेही दाति आपस ते जो पाईऐ ॥
नानक सा करमाति साहिब तुठै जो मिलै ॥१॥

महला २ ॥
एह किनेही चाकरी जितु भउ खसम न जाइ ॥
नानक सेवकु काढीऐ जि सेती खसम समाइ ॥२॥

पउड़ी ॥
नानक अंत न जापन्ही हरि ता के पारावार ॥
आपि कराए साखती फिरि आपि कराए मार ॥
इकन्हा गली जंजीरीआ इकि तुरी चड़हि बिसीआर ॥
आपि कराए करे आपि हउ कै सिउ करी पुकार ॥
नानक करणा जिनि कीआ फिरि तिस ही करणी सार ॥२३॥

(छंत) हरि जुगु जुगु भगत उपायआ पैज रखदा आया राम राजे ॥
हरणाखसु दुसटु हरि मार्या प्रहलादु तरायआ ॥
अहंकारिया निन्दका पिठि देइ नामदेउ मुखि लायआ ॥
जन नानक ऐसा हरि सेव्या अंति लए छडायआ ॥४॥६॥१३॥२०॥

सलोकु मः १ ॥
आपे भांडे साजिअनु आपे पूरणु देइ ॥
इकन्ही दुधु समाईऐ इकि चुल्है रहन्हि चड़े ॥
इकि निहाली पै सवन्हि इकि उपरि रहनि खड़े ॥
तिन्हा सवारे नानका जिन्ह कउ नदरि करे ॥१॥

महला २ ॥
आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि ॥
तिसु विचि जंत उपाइ कै देखै थापि उथापि ॥
किस नो कहीऐ नानका सभु किछु आपे आपि ॥२॥

पउड़ी ॥
वडे कीआ वडिआईआ किछु कहणा कहणु न जाइ ॥
सो करता कादर करीमु दे जीआ रिजकु स्मबाहि ॥
साई कार कमावणी धुरि छोडी तिंनै पाइ ॥
नानक एकी बाहरी होर दूजी नाही जाइ ॥
सो करे जि तिसै रजाइ ॥२४॥१॥ सुधु

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